छत्तीसगढ़ी व्याकरण के भाषा और साहित्य के अंतर्गत हम पढ़ेंगे छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास, छत्तीसगढ़ी नाट्य साहित्य, छत्तीसगढ़ी साहित्य एवं साहित्यकार, छत्तीसगढ़ी उपन्यास, उपन्यासकार और उपन्यास के नाम, छत्तीसगढ़ी कहानी के बारे संक्षिप्त और सारगर्भित जानकारी...
छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य - Chhattisgarhi Language and Literature |
छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास - छत्तीसगढ़ी गद्य की तुलना में छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन की परम्परा अधिक प्राचीन है और विकसित भी। हमें गद्य की जानकारी दन्तेवाड़ा शिलालेख ( 1703 ई. ), कलचुरी शिलालेख ( 1724 ई. ) एवं 1890 ई. में प्रकाशित हीरालाल कावयोपाध्याय के छत्तीसगढ़ी बोली व्याकरण में छत्तीसगढ़ी गद्य का उन्मेष अनेक विद्वानों ने स्वीकार किया है।
जबकि विनय कुमार पाठक सन 1724 के कलचुरियों के अंतिम नरेश राजा अमरसिंह के आरंग शिलालेख को छत्तीसगढ़ी गद्य का सर्वप्रथम स्वरूप निर्दिष्ट करते हैं। तथापि हम उपरोक्त साक्ष्यों के आधार पर कह सकते हैं की छत्तीसगढ़ी का गद्य , पद्य की तुलना में अल्प परिणाम में है।
छत्तीसगढ़ी नाट्य साहित्य
छत्तीसगढ़ी नाट्य साहित्य एक ओर जहां छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य परम्परा को संजोकर रखता है वहीं दूसरी छत्तीसगढ़ी में नाटक में एकाँकी की विधा शैशवावस्था में है। पण्डित लोचन प्रसाद पाण्डेय द्वारा लिखित ' कलिकाल ( 1905 ) ' से छत्तीसगढ़ी के प्रथम नाटककार - लोचन प्रसाद पाण्डेय द्वारा लिखित ' कलिकाल ( 1905 ) ' से छत्तीसगढ़ी के प्रथम नाट्यकार - लोचन प्रसाद पाण्डेय को माना जाता है।
छत्तीसगढ़ी साहित्य एवं साहित्यकार
- पण्डित लोचन प्रसाद पाण्डेय - कलिकाल ( 1905 ) - प्रथम छत्तीसगढ़ी नाटक
- डॉ. खूबचन्द बघेल - करम छैडहा बेटवा विवाह, ऊँच नीच, लेड़गा सुजान
- श्री नन्दकिशोर तिवारी - परेमा ( 1986 ई. )
- जनरैल सिंह - बेटवा बिहान , किसान के करलई
- कपिलनाथ कश्यप - अंधियारी रात ( 1992 ई. ) , नवा बिहाव ( 1994 ई. ), पूजा के फूल ( 1997 ई. ) , गुरआवत बिहाव ( 1998 ई. )
- टिकेंद्र टिकरिया - साहूकार से छुटकारा ( 1963 ई. )
- श्री नारायणलाल परमार - मतवार अऊ दूसर एकाँकी ( 1977 )
- श्री रामलाल कश्यप - श्री कृष्णार्जुन युद्ध।
- श्री लखन लाल गुप्त कृत - बेटी के मनसूबा और बर के खोज में।
- श्री परदेशीराम वर्मा - मय बइला नोहंव ( 1987 ई.
छत्तीसगढ़ी उपन्यास
छत्तीसगढ़ी उपन्यास की प्रकृती लोक जीवन पर आधारित और सार्वदेशिक तथा अपने अंचल की संस्कृति को अपने ऊपर समांए हुए है। छत्तीसगढ़ी उपन्यास हिंदी से प्रभावित और आंचलिकता पर आधारित है। छत्तीसगढ़ी में कुछ उपन्यास इस प्रकार है।
उपन्यासकार और उपन्यास के नाम
- शिवशंकर शुक्ल - दियना के अंजोर ( 1964 ) प्रथम उपन्यास, मोंगरा ( द्वितीय उपन्यास - 1965 )
- पं. कृष्ण कुमार शर्मा - छेरछेरा ( 1983 ई. ) विनोबा भावे का आदर्श एवं अशिक्षित ग्रामीण परिवेश पर आधारित है।
- केयूर भूषण - फुटहा करम ( 1970 ई. ) ( एक नारी की नियति पर आधारित उपन्यास )
- परदेशी राम वर्मा - आवा।
- श्री लखनलाल गुप्त - चन्दा अमरित बरसाईस ( 1965 ई. )
छत्तीसगढ़ी कहानी
छत्तीसगढ़ी लोककथाएं अत्यन्त समृद्ध है, छत्तीसगढ़ी में कहानी लेखन की परम्परा भारतेंदु युग से मिलती है -
कहानीकार और उनकी कहानी इस प्रकार है-
- बंशीधर पांडे - हीरु के कहानी ( प्रथम कहानी )
- डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा - सुसक झन कुररी सुरता ले, तिरिया जनम झनि देय।
- पं. श्यामलाल चतुर्वेदी - भोलवा, भोलाराम बनिस ( 1955 ई. ), पर्राभर लाई
- श्री रंजनलाल पाठक - स्वतन्त्र - स्वतन्त्र सन्देश, छत्तीसगढ़ गौरव, चिंगारी के फूल
- श्री शिवशंकर शुक्ल - रधिया ( 1969 ई. )
- कपिलनाथ कश्यप - डहर के कांटा
- डॉ. विनय कुमार पाठक - छत्तीसगढ़ी लोक-कथा
- श्री लखनलाल गुप्ता
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