छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का संक्षिप्त इतिहास

बस्तर का संक्षिप्त इतिहास - बस्तर क्षेत्र को दण्डकारण्य का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। तब इस राज्य का कोई अस्तित्व नहीं था। इक्ष्वाकु का तृतीय पुत्र दण्ड, दण्ड जनपद का शासक था। शुक्राचार्य राजा दण्ड के राजगुरु थे। दण्ड के नाम पर ही इसे दण्डक जनपद और कालांतर में सम्पूर्ण वन क्षेत्र को दण्डकारण्य कहा गया था।

बस्तर के इतिहास 

 बस्तर की राजधानी कुम्भावती थी महाकाव्य काल में, जिसे रामायण में मधुमन्त कहा गया है। इसके सीमा के अंतर्गत भूतपूर्व बस्तर राज्य, जयपुर जमीन्दारी, चाँदा जमीन्दारी और गोदावरी नदी के उत्तर का भाग आधुनिक आंध्र प्रदेश सम्मिलित थे अर्थात रामायणयुगीन ' दण्डक वन ' ही आज के बस्तर का दण्डकारण्य है, जो महाभारत काल में महाकांतार के नाम से भी जाना जाता था।

मध्यकालीन राजवंश

छिन्दक नागवंश (1023-1324 ई.) जिस समय दक्षिण कोशल क्षेत्र में कलचुरी वंश का शासन था,लगभग उसी समय बस्तर क्षेत्र में छिन्दक नागवंश के राजाओं का अधिकार था। ये नागवंशी ' चक्रकोट' के राजा के नाम से जाने जाते थे। कालांतर में इसका रूप बदलकर इसका नाम ' चित्रकोट ' हो गया था। बस्तर के नागवंशी शासक भोगवतीपुरवरेश्वर की उपाधी धारण करते थे।

धारावर्ष - नृपभुशण के उत्तराधिकारी धारावर्ष जगदेवभुषण का बारसूर से शक सम्वत 983 अर्थात 1060 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिनके अनुसार उसके सामन्त चन्द्रादित्य ने बारसूर में एक तालाब का उत्खनन करवाया था तथा साथ ही एक शिव मन्दिर का निर्माण कराया था। समकालीन समय में धारावर्ष महत्वपूर्ण शासक था।

मधुरान्तकदेव - धारादेव की मृत्यु के बाद उसके दो सम्बन्धी मधुरान्तकदेव तथा उसके बेटे सोमेश्वर के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई और कुछ समय के लिए मधुरान्तकदेव धारावर्ष के बाद शासक बना था। उसका एक ताम्रपत्र लेख राजपुर ( जगदलपुर ) से प्राप्त हुआ है, जिसमें भ्रमरकोट मण्डल स्थित राजपुर ग्राम को दान देने का उल्लेख है। भ्रमरकोट ' चक्रकोट ' का ही दूसरा नाम है।

सोमेश्वरदेव - सोमेश्वर के काल के अभिलेख 1069 से 1079 ई. के मध्य प्राप्त हुए थे। उसकी मृत्यु 1079 से 1111 ई. के मध्य हुई थी, क्योंकि सोमेश्वर की माता गुण्डमहादेवी का नारायणपाल से प्राप्त शिलालेख से पता चलता है की 1111 ई. में सोमेश्वर का पुत्र कन्हरदेव के शासन का उल्लेख मिलता है।

राजभूषन अथवा सोमेश्वर द्वितीय - कन्हर के पश्चात राजभूषन सोमेश्वर द्वितीय नामक राजा हुआ था। उसकी रानी गंगमहादेवी का एक शिलालेख बारसूर से प्राप्त हुआ है, जिसमें शक सम्वत 1130 अर्थात 1208 ई. उल्लिखित है।

जगदेवभूषन नरसिंहदेव - सोमेश्वर द्वितीय के बाद जगदेवभूषन नरसिंहदेव राजा हुआ था, जिसका शक सम्वत 1140 अर्थात 1218 ई. का शिलालेख जतनपाल से तथा शक सम्वत 1147 अर्थात 1224 ई. का स्तम्भ लेख प्राप्त हुआ है। भैरमगढ़ के एक शिलालेख से ज्ञात होता है की वह माणिक देवी का भक्त था। माणिक देवी को दन्तेवाड़ा की प्रसिद्ध दन्तेश्वरी देवी से समीकृत किया जाता है

इसके बाद छिन्दक नागवंश का क्रमबध्द इतिहास नही मिलता है। सुनारपाल के तिथीविहिन अभिलेख से जयसिंह देव नामक राजा का उल्लेख प्राप्त होता है। अंतिम लेख ' टेमरा ' से प्राप्त हुआ है, जो एक सती स्मारक लेख है। शक सम्वत 1246 अर्थात 1324 ई. का है, जिसमें हरिश्चन्द्र नामक चक्रकोट के राजा का उल्लेख प्राप्त होता है। यह नागवंश का राजा था इसके बाद नागवंश का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

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