निबंध लेखन : Essay-Writing Hindi Grammar By Khilawan

 23.  निबंध लेखन : Essay-Writing

Hello welcome readers पिछले Post में हमने बात किया था पत्र लेखन Letter-Writing के बारे में इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं निबंध के बारे में वैसे तो निबंध के बारे में आप पहले से जानते होंगे लेकिन इस पोस्ट के माध्यम से हम उसके बारे में और अच्छे से जानेगें चलिए शुरू करते हैं। निबंध की परिभाषा से -

निबंध शब्द दो शब्दों के सार्थक मेल से बना है। नि+बंध अर्थात अच्छी तरह बंधा हुआ। निबंध में शब्द सीमा के अंतर्गत हम नियमानुसार विचारों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करते हैं। निबंध के द्वारा लेखक आत्मीयता, वैयक्तिकता के साथ विषय या प्रसंगों पर स्वयं की भाषा शैली में अपने भाव या विचार प्रकट करता है। 

निबंध लिखते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए -

  • निबंध का आरम्भ अथवा अंत आकर्षक होना चाहिए। 
  • रोचक, प्रभावशाली तथा सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। 
  • विषय तथा शब्द सीमा को ध्यान में रखकर निबंध लिखा जाना चाहिए। 
  • विराम-चिन्हों का उचित स्थान पर उपयोग करना चाहिए। 
  • एक ही बात को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए। 
  • निबंध को प्रभावशाली तथा रोचक बनाने के लिए दोहों, मुहावरों, लोकोक्तियों तथा सूक्तियों आदि का प्रयोग करना चाहिए।

निबंध दो प्रकार के होते हैं -

  1. व्यक्तिगत प्रधान निबंध 
  2. विषय प्रधान निबंध 

1. व्यक्तिगत प्रधान निबंध :- इस प्रकार के निबंधों में लेखक के भावों से संबंधित निबंध आते हैं। इन्हें इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • वर्णनात्मक निबंध - जब निबंधकार किसी स्थान या वस्तु का वर्णन इस प्रकार करता है कि पहले वाले के सामने वह दृश्य सजीव हो उठे तो वे वर्णनात्मक निबंध कहलाता है। 
  • भावात्मक निबंध - इस प्रकार के निबंधों के अंतर्गत लेखक की निजी अनुभूतियों के आकलन होते हैं। इसके द्वारा लेखक अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देता है। इस प्रकार के निबंधों में विचारों की प्रधानता नहीं रहती। 
  • विवरणात्मक निबंध - जब निबंधों में अतीत का चित्रण रोचक शैली में प्रस्तुत किया जाता है तो वे विवरणात्मक निबंध कहलाते हैं। 
  • आत्मपरक निबंध - जिन निबंधों में लेखक अपने व्यक्तिगत जीवन के भावों को प्रकट करता है, बे आत्मपरक निबंध कहलाते हैं। 
  • विचारात्मक निबंध - जब लेखक अपने मौलिक विचारों को तर्कबद्ध ढंग से प्रस्तुत करता है तो वे विचारात्मक निबंध कहलाते हैं। 

2. विषय प्रधान निबंध :- इस प्रकार के निबंधों का वर्गीकरण विषय के आधार पर होता है। 

  • साहित्यक निबंध - इस प्रकार के निबंध जो साहित्यिक विषयों पर लिखे जाते हैं, वे साहित्यिक निबंध कहलाते हैं। 
  • आर्थिक निबंध - विभिन्न आर्थिक समस्याओं और आर्थीक विषयों पर लिखे गए निबंध आर्थिक निबंध कहलाते हैं। 
  • वाणिज्यिक निबंध - वह निबंध जिनका विषय उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य से संबंधित रहता है वे वाणिज्यिक निबंध कहलाते हैं। 

निबंध के भाग 

निबंध को चार भागों में बाँटा जाता है। 

  1. शीर्षक 
  2. प्रस्तावना 
  3. विषय-वस्तु 
  4. उपसंहार 

1. शीर्षक - निबंध लिखते समय यह आवश्यक है कि निबंधकार शीर्षक का चयन बहुत सोच-विचार कर करें। शीर्षक जहाँ तक संभव हो छोटा एवं आकर्षक होना चाहिए। 

2. प्रस्तावना - इसके माध्यम से निबंध लेखन की शुरुआत की जाती है। इसमें विषय का सामान्य परिचय तथा लेखक क्या कहना चाहता है; इसका थोड़ा-सा संकेत होना चाहिए। प्रस्तावना की भाषा कसी हुई और विचार गुंधे हुए होने चाहिए। 

3. विषय-वस्तु - इसके अंतर्गत निबंधों में जिन-जिन सवालों को आप उठाना चाहते हैं, उन्हें क्रमानुसार एक-एक अनुच्छेद में देते जाएं। इससे विषय के प्रतिपादन में पुनरावृत्ति नहीं होती और सारी विषय-वस्तु स्पष्ट हो जाएगी। 

4. उपसंहार - यह निबंध का अंतिम भाग होता है। इसमें लेखक अपना उद्देश्य और समस्याएं जो उसके द्वारा निबंध में उठाई गई हैं, उनका संक्षेप में उल्लेख करते हुए अपना समाधान प्रस्तुत करता है। 

कुछ निबंध के उदाहरण 

1. सुभाष चंद्र बोस 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक और जय हिन्द का नारा देने वाले सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई. को उड़ीसा (ओडिशा) में कटक नामक नगरी में एक सम्पन्न बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाष जी के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। जानकीनाथ बोस और प्रभावती को कुल मिलाकर 14 संतानें थीं। जिसमें छः (6) बेटियाँ और आठ (8) बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान तथा पाँचवे बेटे थे। सुभाष चंद्र बोस ने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही प्राप्त की। सुभाष चंद्र बोस पर अपने माता-पिता व भाई के अलावा पाठशाला के मुख्य शिक्षक श्री बेनीमाधव का विशेष प्रभाव पड़ा। स्वामी रामकृष्ण एवं विवेकानंद के धार्मिक विचारों से सुभाष चंद्र बोस बहुत प्रभावित थे। 

   प्रारम्भ से ही उनकी विशेष रूचि आध्यात्मिकता में थी। 1914 ई. में कम आयु में ही वे ईश्वर की खोज में निकल पड़े। उत्तर भारत के अनेक तीर्थस्थानों की उन्होंने यात्राएँ कीं, परन्तु कहीं भी ईश्वर प्राप्ति का अवसर न मिला। अंत में वे अपने घर लौट आए।

  सुभाष चंद्र बोस का विद्यार्थी जीवन उच्च कोटि का रहा। वे कुशाग्र बुद्धि के छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएँ अच्छे अंक प्राप्त करके उत्तीर्ण कीं। ग्यारहवीं की परीक्षा में उनकी प्रथम श्रेणी रही। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने प्रेसीडैन्सी कॉलेज कोलकाता में प्रवेश लिया। वहाँ उन्होंने दर्शनशास्त्र में बी. ए. आनर्स में प्रवेश लिया। उन्होंने देखा कि कॉलेज में अंग्रेज अध्यापक एवं अंग्रेज विद्यार्थी भारतीयों का बहुत अपमान करते थे। इससे सुभाष चंद्र बोस के स्वाभिमान तथा देशभक्ति को ठेस पहुँची। एक अँग्रेज अध्यापक के दुर्व्यवहार को वे सहन न कर सकें। फलस्वरूप उस अंग्रेज अध्यापक को उन्होंने मारा-पिटा। इस कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में 1912 ई. में सर आशुतोष मुखर्जी ने उनके निष्कासन को रद्द कर दिया। सुभाष ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से प्रथम श्रेणी में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी. ए. पास करने के पश्चात सुभाष चंद्र बोस उच्चतर शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। आई. सी. एस. परीक्षा में उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ। उन्होंने आई. सी. एस. से त्यागपत्र दे दिया क्योकि उनके देश प्रेम तथा स्वभिमान ने अंग्रेजों की मशीन का पुर्जा बनने से मना कर दिया। 

सन 1921 में, सुभाष चंद्र बोस भारत वापस लौट आए। उस समय स्वाधीनता प्राप्ति के लिए गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन जारी था। बंगाल में देशबंधु चितरंजन दास इस आंदोलन के नेता थे। सुभाष चंद्र बोस उनके सम्पर्क में आए। देशबंधु की प्रेरणा से सुभाष कांग्रेस-स्वयं-सेवक दल के कैप्टन बन गए। असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने की वजह से सुभाष को देशबंधु एवं मौलाना आजाद के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 

उन्हें छः महीने की सजा हुई। कारागार में सुभाष चंद्र बोस एवं देशबंधु चितरंजन दास एक-दूसरे के बहुत निकट आए। देशबंधु ने समाज के राजनीतिक विचारों को बहुत महत्व दिया। सुभाष ने उन्हें अपना राजनैतिक गुरु बना लिया। जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन स्थगित किया, तब सुभाष भी जेल से छूट गए। 

  उत्तरी बंगाल में भयंकर बाढ़ के समय सुभाष ने तन-मन-धन से बाढ़ पीड़ितों की सेवा की। उन्होंने 'बंगला कथा' दैनिक समाचार पत्र का सम्पादन किया। अंग्रेजी पत्रिका 'फॉरवर्ड' के वे प्रबंधक बने। 1924 ई. में देशबंधु कोलकाता नगर निगम के  मेयर चुने गए। उन्होंने सुभाष को कार्यकारी अधिकारी बनाया। क्रांतिकारियों को मदद देने के कारण अंग्रेज शासकों ने उन्हें फिर से जेल में दाल दिया। स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें छोड़ा गया। इसके पश्चात उन्होंने अनेक बार जेल यात्रा की। वे 1938 ई. में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के प्रधान हुए। 1939 ई. में त्रिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। महात्मा गांधी से मतभेद के कारण उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। 

द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ होने पर सन 1939 ई. में उन्हें स्वयं के घर में ही नजरबंद कर दिया गया। नेताजी ने एक मुसलमान मौलवी का वेष बनाकर पेशावर अफगानिस्तान होते हुए बर्लिन तक का सफर तय किया। बर्लिन में जर्मनी के तत्कालीन तानाशाह हिटलर से मुलाक़ात की और भारत को स्वतंत्र कराने के लिए जर्मनी व जपाना से सहायता मांगी। जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। इसी दौरान सुभाष चंद्र बोस, नेताजी नाम से जाने जाने लगे। पर जर्मनी भारत से बहुत दूर था। इसलिए 3 जून 1948 को उन्होंने पनडुब्बी से जापान के लिए प्रस्थान किया। पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज में भरती होने का और आर्थिक मदद करने की मांग की। उन्होंने अपनी मांग में संदेश दिया कि "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।" 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताईवान के पास हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। आज भी उनकी मृत्यु के कारणों पर विवाद बना हुआ है। वास्तव में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन, त्याग, तपस्या एवं बलिदान की अनुपम कहानी है। 

 2. बढ़ती जनसंख्या - एक समस्या 

भारत की निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या राष्ट्र की एक भयानक समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए प्रत्येक देश अपने-अपने ढंग से जुटा हुआ है। तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश का विकास नही हो पा रहा है। अतः राष्ट्रिय सरकार ने इसके समाधान के लिए 'परिवार नियोजन' का आह्वान किया है। 

   प्राचीन काल में अधिक पुत्रों की आवश्यकता होती थी। वेदों में दस पुत्रों की कामना की गई है। सावित्री ने यमराज से अपने लिए सौ भाइयों तथा सौ पुत्रों का वर माँगा था। कौरव सौ भाई थे। ये उस समय की बातें हैं, जब जनसंख्या कम थी। तब समाज की सुरक्षा, समृद्धि और सभ्यता के विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि नितांत आवश्यक थी लेकिन आज समय बदल चूका है। अधिक संतान पिता तथा परिवार के लिए ठीक नहीं होती। जब 1971 में भारत की जनगणना की गई उस समय भारत की जनसंख्या 44 करोड़ थी। 1976 में यह 60 करोड़ से ऊपर पहुंच गई थी। वर्तमान समय में यह जनसंख्या एक अरब अड़तीस करोड़ है एक आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार। यह स्थिति तो उस जनसंख्या की है जो पंजीकृत है, परन्तु उसकी गिनती कहाँ जो पंजीकृत नहीं है, जैसे खानाबदोश जातियाँ आदि। यदि इन सबको मिलाकर अनुमान लगाया जाए तो वर्तमान भारत की जनसंख्या 1 अरब 50 करोड़ के आस-पास ठहरती है। अधिक जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी नहीं हो पा रही हैं। देश की अधिकांश जनता के गाँवों में रहने के कारण उनका जीवन उनका जीवन विशेष नही है। वे साधारण जीवन जी रहे हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या को देखकर कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं, जब लोगों को घास-फूस खाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। 

  यों तो देश की जनसंख्या उस देश की शक्ति का आधार होती है। परन्तु यदि जनसंख्या इसी गति से अबाध रूप से बढ़ती रही तो यह देश के पतन का कारण बनेगी, जिसकी कभी यह शक्ति हुआ करती थी। सीमा से अधिक आबादी देश का गौरव नहीं होती, ऐसी दशा में तो वह अभिशाप हो जाएगी। आबादी की दृष्टि से तो भारत संसार में द्वितीय स्थान पर खड़ा हुआ है, परन्तु अन्य क्षेत्र में वह काफी पीछे खड़ा है। यदि इसी तरह जनसंख्या बढ़ती रही तो यह चीन से भी आगे निकल जाएगा। 

   प्रत्येक देश के साधन सीमित होते हैं। प्रत्येक देश अपने साधनों को बढ़ाने की कोशिश करता रहता है। उपलब्ध साधनों के अनुरूप ही देश की जनसंख्या को मकान, भोजन, वस्त्र, काम-धंधा व अन्य सुविधाएं मिल जाती हैं। यदि साधन तेजी से से बढ़ते हैं और जनसंख्या की वृद्धि थोड़ी होती है, तो लोगों को अपेक्षाकृत अधिक सुविधाएं मिलने लगती हैं और उनका जीवन-स्तर सुधर जाता है। यदि जनसंख्या में वृद्धि की दर साधनों की वृद्धि की दर से कही अधिक हो, तो लोगों को मिलने वाली सुविधाएं बढ़ने की बजाय घट जायेंगी और उनका जीवन स्तर नीचे गिर जाएगा। 

एक बार ध्यान देने योग्य है की साधनों की वृद्धि समांतर श्रेणी में अर्थात 1, 2, 3, 4 होती है जबकि जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी में अर्थात 1, 3, 9, 27 होती है। अतः यदि जनसंख्या इस गति से न बढ़े तो साधनों में कमी न आएगी और यदि इसी गति से बढ़ती रही तो साधनों की कमी अवश्य पड़ जाएगी। 

   परिणामस्वरूप उपलब्ध सीमित साधनों में ही बढ़ती हुई जनसंख्या को भी निर्वाह करना पड़ता है। अतः जीवन के लिए आवश्यक सब वस्तुओं का अभाव है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि गरीबी है; कुपोषण है; बेरोजगारी है और इन कमियों से उत्पन्न होने वाली बुराइयाँ हैं। ये समस्याएं प्रत्येक परिवार और प्रत्येक व्यक्ति पर अपना कुप्रभाव डालती हैं किन्तु आश्चर्य की बात है की लोग इस बारे में सजग नहीं हैं। 

जनसंख्या वृद्धि को रोकने हेतु सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रम आरम्भ किया है। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के लिए बड़ी धनराशि रखी जाती है। देश भर में स्वास्थ्य केंद्र खोले गए हैं, जो इस संबंध में लोगों को निःशुल्क सलाह देते हैं। गर्भ निरोधक दवाईयां भी हैं; अन्य उपाय भी हैं। इसी समस्या के आर्थीक निराकरण हेतु सरकार ने कानून बनाकर लड़के-लड़कियों के विवाह की आयु बढ़ा दी है। स्वेच्छा से नसबंदी कराने वालों को सरकार कुछ प्रोत्साहन भी देती है। सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि लोग स्वयं समझें कि छोटा परिवार सुखी रहेगा; परिवार बढ़ने के साथ जिम्मेदारियाँ-परेशानियाँ बढ़ेंगी। बड़े परिवार स्वयं अपने लिए, समाज के लिए और सरकार के लिए भी कठिनाइयाँ पैदा करते हैं। 

      इस भयंकर समस्या का समाधान करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। प्रत्येक नागरिक इस समस्या के प्रति जनसाधारण जागृति उत्पन्न करे। सभी गाँवों तक स्वास्थ्य योजनाओं को लाभ पहुंचाया जाए। केवल एक व्यक्ति जनसंख्या की समस्या का समाधान नहीं कर सकता, इसके लिए प्रत्येक नागरिक को सहयोग देना पड़ेगा। तभी मनुष्य के  जीवन की सभी आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं। 

    अतः परिवार को छोटा रखकर और जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश रखकर हम अपना, अपने परिवार, अपनी आने वाली पीढ़ियों का भला कर सकते हैं और सरकार को भी परेशानी से उभार सकते हैं। जनसंख्या आधिक्य की समस्या का समाधान परिवार को सीमित रखना है। यह आपका, हमारा अर्थात हम सबका व्यक्तिगत सामाजिक एवं राष्ट्रीय कर्तव्य है। 

 3. दहेज प्रथा -सामजिक अभिशाप 

प्राचीन काल से पिता विवाह के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार अपनी पुत्री को गृहस्थी का समान उपहार में देता है परन्तु आधुनिक काल में समय के परिवर्तन के साथ-साथ यह परम्परा 'अनिवार्यता' में बदल गई। आज दहेज-प्रथा ने समाज की सबसे बड़ी समस्या का रूप ले लिया है। 

माता-पिता के लिए संतान से बड़ा कोई धन नहीं होता, संतान से बड़ा कोई सुख नहीं होता। भारतीय समाज में लड़कियां सदैव पूज्य रही हैं। उत्तर भारत में उन्हें 'कंजक' के रूप में पूजा जाता है। वैदिक युग में लड़कियां यज्ञोपवीत पहनती थीं। यज्ञ करती थीं। वे विदुषी होती थीं। वेदों की अनेक ऋचाएं नारियों द्वारा रची गई हैं। 

     आज लड़कियों की सामाजिक स्थिति दयनीय हो गयी है। एक और लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से अधिक अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो रही हैं, दूसरी ओर उन्हें जन्म से ही 'बोझ' और 'अभिशाप' की संज्ञा दी जाने लगी है। समाज का इतना पतन हो चुका है कि गर्भ में ही उनकी हत्या कर दी जाती है। 

     इस स्थिति के लिए यदि कोई दोषी है तो वह है आज के समाज की सबसे भयंकर प्रथा-दहेज। आज का समाज धन के पीछे आँख मूंदकर भाग रहा है। आज लोग छल-कपट, झूठ, भ्रस्टाचार, बेईमानी आदि किसी भी मार्ग को अपनाकर धन बटोरने में लज्जा अनुभव नही करते। धन की इसी भूख ने 'दहेज-प्रथा' को लड़कियों के लिए 'अभिशाप-प्रथा' का रूप दे दिया है। 

    विवाह युवक और युवती के आजीवन संग-संग रहने का पवित्र बंधन है। विवाह पावन-यज्ञ है। विवाह गृहस्थ-जीवन में प्रवेश करने की मांगलिक और पावन प्रथा है। अग्नि के समक्ष युवक प्रतिज्ञा करता है कि वह आजीवन पत्नी का तन, मन, धन से ध्यान रखेगा। उनके सुख-दुःख एक होंगे। वह परिश्रम करके गृहस्थी चलाएगा। वही युवक कम दहेज लाने के कारण पत्नी की हत्या तक करने से नहीं हिचकिचाता। परिवार के सदस्य राक्षसी रूप धारण करके बहू को जलाकर मार डालते हैं। 

   कुछ परिवारों में नवविवाहिता को दहेज लाने के लिए विवश कर दिया जाता है। दिन-रात व्यंग्य-बाणों से उसका कोमल हृदय छलनी-छलनी कर दिया जाता है। उसके माता-पिता के प्रति अपमान भरे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। कुछ बहुएं अपमान सहन नहीं कर पातीं। वे अपने माता-पिता की आर्थिक स्थिति से परिचित होती हैं। वे जानती हैं कि वे जितना दहेज लाई हैं, इसे देने के लिए ही उनके माता-पिता ने कितने कष्ट सहे हैं। वे तंग आकर आत्महत्या कर लेती हैं। समाचार-पत्रों में प्रतिदिन ऐसी घटनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। 

    दहेज-प्रथा के विरुध्द कानून बना हुआ है। दहेज के लालची इन कानूनों की चिंता नहीं करते। यदि कानून का भय होता तो प्रतिदिन बहुओं के जलने या आत्महत्या करने की घटनाओं में कमी आ जाती। इसके विपरीत ऐसी घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। निर्धन माता-पिता के पास निर्णय प्राप्त करने के लिए धन का अभाव होता है। कचहरियों में वर्षों तक मुकदमें चलते रहते हैं। दहेज़ न जुटा सकने वाले माता-पिता वकीलों की बड़ी-बड़ी फीसें नहीं चुका सकते। इसलिए, पुत्रियों पर होने वाले अत्याचार सहते रहते हैं। 

     दहेज प्रथा समाजिक कु-प्रथा है। इस समस्या का समाधान कानून से नहीं हो सकता। इसके लिए सामाजिक सोच में परिवर्तन आवश्यक है। जब तक लोग स्वयं दहेज लेना बंद नहीं करते, तब तक यह प्रथा समाप्त नहीं हो सकती। इस समस्या को बढ़ावा अमीरों से मिला है। कारें, बंगलें, टीवी, फ्रिज, एयरकंडीशनर, फर्नीचर, स्वर्ण-आभूषण आदि दहेज के रूप में दिए जाने लगे हैं। विवाह-स्थल देखकर लगता है मानों की किसी मेले का आयोजन किया गया है। इस प्रकार के विवाहों पर तत्काल प्रतिबंध लगाना चाहिए। इस प्रकार के आडंबरों का बहिष्कार करना चाहिए। धन-सम्पत्ति का यह प्रदर्शन कम आय वालों में हीनता की भावना भरता है। 

प्रत्येक युवक को प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वह दहेज-प्रथा का विरोध करेगा। यदि विवाह-योग्य युवक प्रण कर लें कि वे बिना दहेज लिए विवाह करेंगे तो इस समस्या से तुर्रंत छुटकारा मिल सकता है। 

आओ देखें क्या जाना (Lets Revise)

  1. निबंध में भाव या विचार पूर्णतया एक सूत्र में बंधे हुए रहते हैं। 
  2. निबंध लिखते समय विषय तथा शब्द-सीमा का ध्यान रखना चाहिए। 
  3. निबंध दो प्रकार के होते हैं - व्यक्ति प्रधान और विषय प्रधान। 
  4. निबंध को चार भागों में बाँटा गया है - शीर्षक, प्रस्तावना, विषय-वस्तु और उपसंहार। 

अभ्यास के प्रश्न 

सोचिए और बताइये 

  1. 'दहेज प्रथा' विषय पर अपने शब्दों में निबंध लिखों। 

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए -

1. निबंध से आप क्या समझते हैं?

उत्तर - निबंध शब्द दो शब्दों के सार्थक मेल से बना है। नि+बंध अर्थात अच्छी तरह बंधा हुआ। निबंध में शब्द सीमा के अंतर्गत हम नियमानुसार विचारों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करते हैं। निबंध के द्वारा लेखक आत्मीयता, वैयक्तिकता के साथ विषय या प्रसंगों पर स्वयं की भाषा शैली में अपने भाव या विचार प्रकट करता है।


2. निबंध लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर - निबंध लिखते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए -

  • निबंध का आरम्भ अथवा अंत आकर्षक होना चाहिए। 
  • रोचक, प्रभावशाली तथा सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। 
  • विषय तथा शब्द सीमा को ध्यान में रखकर निबंध लिखा जाना चाहिए। 
  • विराम-चिन्हों का उचित स्थान पर उपयोग करना चाहिए। 
  • एक ही बात को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए। 
  • निबंध को प्रभावशाली तथा रोचक बनाने के लिए दोहों, मुहावरों, लोकोक्तियों तथा सूक्तियों आदि का प्रयोग करना चाहिए।

3. निबंध कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर - निबंध दो प्रकार के होते हैं -

  1. व्यक्तिगत प्रधान निबंध 
  2. विषय प्रधान निबंध 

4. निबंध को कितने भागों में बाँटा गया है?

उत्तर - निबंध को चार भागों में बाँटा जाता है। 

  1. शीर्षक 
  2. प्रस्तावना 
  3. विषय-वस्तु 
  4. उपसंहार 

2. निम्नलिखित विषयों पर निबंध लिखिए-

  1. हमारा राष्ट्रीय खेल 
  2. साक्षरता आंदोलन 
  3. राजीव गाँधी 
  4. भारत के प्रमुख तीर्थ स्थल 
  5. मेरी रेल यात्रा 
  6. छुआछूत। 
इस पोस्ट से अगर आपका कुछ भी फायदा हुआ हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। धन्यवाद!

<<Previous post: 22. पत्र-लेखन (Letter-Writing)

Next post: 24. अपठित गद्यांश (Unseen Passage)>>

अन्य महत्वपूर्ण टॉपिक जो की आपके लिए उपयोगी हैं - 

1. भाषा-बोली, लिपि और व्याकरण Language-Dialect, Script and Grammar

2. वर्ण विचार : Phonology

3. संधि : Joining

4.  शब्द-विचार: Morphology

5. उपसर्ग : Prefix

6.  प्रत्यय : Suffix

7. समास : Compound

रचनात्मक मूल्यांकन-1

8. शब्द-भंडार : Vocabulary

9. संज्ञा : Noun 

10. लिंग : Gender 

11. वचन : Number 

12. कारक : Case 

13. सर्वनाम : Pronoun 

14. विशेषण : Adjective 

रचनात्मक मूल्यांकन-2 

योगात्मक मूल्यांकन-1 

15. क्रिया : Verb 

16. काल : Tense 

17. वाच्य : Voice 

18. वाक्य विचार : Syntax 

19. विराम-चिन्ह : Punctuation Marks 

रचनात्मक मूल्यांकन-3 

20. मुहावरे और लोकोक्तियाँ : Idioms and Proverbs 

21. अनुच्छेद लेखन : Paragraph-Writing 

22. पत्र-लेखन : Letter-Writing 

23. निबंध-लेखन : Essay-Writing 

24. अपठित गद्यांश : Unseen Passage

रचनात्मक मूल्यांकन-4 

योगात्मक मूल्यांकन-2 

Related Posts

Post a Comment