21. अनुच्छेद-लेखन : Paragraph Writing
किसी विषय पर एक ही अनुच्छेद में विचार लिखना अनुच्छेद-लेखन कहलाता है। अनुच्छेद-निबंध का छोटा रूप होता है। अनुच्छेद-लेखन एक रचनात्मक कला है जिसमें किसी विषय पर कम-से-कम शब्दों में अपने पूर्ण विचार व्यक्त किए जाते हैं।
अनुच्छेद-लेखन के समय निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए -
- अनुच्छेद लिखते समय, स्पष्ट, रोचक तथा व्यवहारिक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- 80 से 150 शब्दों में ही अनुच्छेद लिखना चाहिए।
- विचार क्रम में लिखे होने चाहिए।
- अनुच्छेद लिखने से पूर्व विषय की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
आओ, अनुच्छेद लेखन के कुछ उदाहरण देखें -
1. कर्म का विश्व में महत्व
अनेक दार्शनिकों व विचारकों ने समय-समय पर जगत को कर्म-स्थल कहा है। "यह विश्व कर्म की रंग स्थली है, परम्परा लग रहीयहाँ, ठहरा जिसमें जितना बल है" जैसी उक्तियाँ कर्म प्रधान विश्व की ओर ही संकेत करती हैं। गीता 'कर्म रहस्य' के अनावरण का अनोखा ग्रंथ है। महाभारत का 'भीष्म पर्व' कर्म की ही बात करता है। जगत अपने आप में कर्म का प्रतिफल है, कर्म ही प्रधान है। बाक़ी अन्य बातें गौण रह जाती हैं। महामना तुलसीदास ने प्रकारांतर से प्रभु की अर्चना करते समय यही बात कही कि उस विश्व विभव के स्वामी ने अपनी इच्छा से जिस जगत की उत्पत्ति की है, उसमें कर्म पर सर्वाधिक बल दिया है। वह लीलापुरुष भी जब-जब धरती पर उतरता है तो धरा का उद्धार करने के लिए कर्म करता है। लीला शब्द तक में जब कर्म का सद्भाव है तो हम जैसे सामान्य प्राणियों की तो बात ही क्या है। कर्म का रहस्य सृष्टि के अणु-अणु में व्याप्त है। कर्म एक सार्वभौमिक सत्य है। यह सार्वकालिक तथा सार्वजनिक तथ्य है। कर्म से तो बचा ही नहीं जा सकता। सामान्य कीड़े से लेकर बड़े-बड़े जंतु तक प्रत्येक को अपनी उदर पूर्ति एवं जीवित रहने के लिए हाथ-पाँव तो हिलाने ही पड़ते हैं। इस जगत में कर्म से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है। कर्म ही सेवा है, कर्म ही भक्ति है, कर्म ही साहस है, कर्म ही ईश्वर के प्रति अपनी निष्ठा ज्ञापित करने का दूसरा नाम है।
2. श्रम का महत्व
हर एक मनुष्य जीवन में सफल होना चाहता है। यह सफलता उसे श्रम करने पर ही प्राप्त होता है, क्योंकि संसार में सफलता पाने का एक ही साधन है और वह है - श्रम। मानव जीवन में श्रम का विशेष महत्व होता है। यही वह शक्ति है जो दुर्बल को सबल और रंक को राजा बना सकती है। परिश्रमी व्यक्ति श्रम करके ही अपने जीवन की हर इच्छा-आकांक्षाओं को अपने परिश्रम के बल पर पूर्ण कर सकता है। इस संदर्भ में बरदराज का उल्लेख करना सर्वथा उपयुक्त है। वरदराज को उनके गुरु के बार-बार असफल होते रहने पर मंदबुद्धि समझकर अपने आश्रम से वापिस घर जाने को बोल दिया था और कहा था कि तुम कुछ नहीं बन सकते, लेकिन राह में उन्हें एक कुएँ के पास विश्राम के लिए रुकना पड़ा। वहाँ कुएँ की मुँडेर पर ऊपर-नीचे आती-जाती रस्सी से पड़े निशान को देखकर उन्हें परिश्रम करने का महत्व ज्ञात हुआ और वे आश्रम लौट आए। उन्होंने तत्पश्चात धैर्यपूर्वक परिश्रम किया। उसके बल पर वे ग्यानी ऋषि वरदराज के रूप में विख्यात हुए। परिश्रम व्यक्ति को उन्नति के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचा सकता है। इतिहास के अध्येता भलीभाँति समझते हैं कि अर्थ और कीर्ति प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने प्ररिश्रम को सबसे अधिक महत्व दिया है। कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मयोगी ही सदैव शिखर तक पहुँच पाते हैं और अपना तथा राष्ट्र का नाम ऊँचा करते हैं। श्रम की उपादेयता को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता।
3. नारी
आज की भारीय शिक्षित नारियाँ अच्छी गृहणियाँ नहीं बन सकतीं, यह प्रचलित धारणा पुरुष के दृष्टिकोण से ही बनाई गई है, स्त्री की कठिनाई को देखकर नहीं। एक जैसे वातावरण में पले और शिक्षा पाए हुए पति-पत्नी के जीवन तथा परिस्थितियों की यदि हम जाँच करें तो सम्भव है, आधुनिक शिक्षित स्त्री के प्रति कुछ सहानुभूति अनुभव कर सकें। विवाह के उपरान्त पुरुष को तो कुछ छोड़ना नहीं पड़ता और न उसकी परिस्थितियों में ही कोई अंतर आता है, परन्तु इसके विपरीत स्त्री के लिए विवाह मानो एक परिचित संसार को छोड़कर एक नए अपरिचित संसार में जाना है। पुरुष के मित्र, उसकी जीवनचर्या, उसके कर्तव्य सब पहले जैसे ही रहते हैं जबकि स्त्री का परिचित परिवेश पूर्णतया बदल जाता है। साधारण परिस्थिति होने पर भी नारियाँ परोक्ष रूप से एकाकी जीवन ही जीती हैं। यह ठीक है कि संयुक्त परिवार न होने बड़े परिवार की समस्याएं उन्हें नहीं घेरे रहती हैं तथापि उसके लिए पुरुष मित्र बनाना वर्जनीय है जबकि पुरुषों को मित्र बनाने के लिए शिक्षित स्त्रियां मिल जाती हैं। अच्छी गृहणी बनने के लिए उसे पति की इच्छानुसार कार्य करना तथा उन्हें खुश रखने के अतिरिक्त और कुछ विशेष नहीं करना होता है। कभी-कभी पति द्वारा कहीं आने-जाने, किसी से बातें करने आदि सवालों से वह दुःखी हो जाती है और अपने अंतरमन में एक विचित्र अभाव-सा अनुभव करती है।
4. रवीन्द्रनाथ टैगोर
रवीन्द्रनाथ का जन्म 6 मई, 1861 ई. को कोलकाता (कलकत्ता) में हुआ था। इनकी माता का नाम शारदा देवी था। रवीन्द्रनाथ को प्रारम्भिक स्फूर्ति अपने पिता से ही मिली थी। वे प्रायः उनेक पास बैठा करते थे। रवीन्द्रनाथ ने अपने पिता से ध्यान, प्रार्थना, एकांत-प्रेम, शान्ति आदि बहुत-सी महत्वपूर्ण बातें सीखीं।
जब वे बहुत छोटे थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। नौकरों की देख-रेख में ही उनका बचपन बीता। विद्यालय के स्कूल भेजा गया, किन्तु उनका मन स्कूल की पढ़ाई में न लगा। उन्हें घर पर ही पढ़ाने का प्रबंध किया।
1873 ई. में उन्होने 'पृथ्वीराज पराजय' नामक नाटक की रचना की। अगले वर्ष 1874 ई. में उन्होंने शेक्सपियर के प्रसिध्द नाटक 'मैकबेथ' का बंगला में अनुवाद किया। वे धीरे-धीरे कविता, कहानी आदि भी लिखने लगे थे।
1877 ई. में उन्होंने पहली बार इंग्लैंड की यात्रा की। वे पहले तो ब्राइटन स्कूल में भर्ती हुए, फिर उसे छोड़कर यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में भर्ती हुए। इस शिक्षा से उन्हें संतोष नहीं हुआ और वे एक वर्ष बाद भारत वापस आ गए।
रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा बहुमुखी थी। वे केवल कवि, उपन्यासकार, नाटककार एवं कहानी लेखक ही नहीं थे, बल्कि एक बड़े संगीतज्ञ, चित्रकार, पत्रकार, अध्यापक, चिंतक, वक्ता एवं अभिनय कला में प्रवीण थे। इन सभी विषयों पर उनका असाधारण अधिकार था।
8 अगस्त, 1941 को गुरुपूर्णिमा के दिन 80 वर्ष की अवस्था में अपने जोड़ासाँ के भवन में शिष्यों के बीच उन्होंने प्राण त्याग दिए। उन्हें खोकर विश्व मानों दरिद्र हो गया।
5.गुरु
'गु' का अर्थ है - अन्धकार। 'रु' का अर्थ है - निरोधक। अर्थात गुरु वह है जो शिष्य के अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करता है। आदर्श अध्यापक शिष्यों के ह्रदय में शुभ संस्कारों का सर्जक होने के नाते ब्रम्हा है, उनके रक्षणवर्धक के नाते विष्णु है तथा अशुभ संस्कारों, कुप्रवित्तियों एवं अंतर्विकारों के अपाकरण के कारण साक्षात प्रलयंकर शंकर हैं।
एक आदर्श अध्यापक भीतर से अपनी सहानुभूति का सहारा देता हुआ ऊपर से आवश्यकता पड़ने पर प्रहार करते हुए अपने शिष्य का नवनिर्माण करता है। वह कभी संकुचित दृष्टिकोण का शिकार नहीं होता। आदर्श अध्यापक में माता का-सा धैर्य होता है। वह दुर्बल कमजोर बच्चे पर अधिक ध्यान देता है। कदम-कदम पर उचित मर्गदर्शन करता है।
आओ पाठ में क्या-क्या पढ़ा एक बार फिर से दोहराएँ
अनुच्छेद लेखन एक रचनात्मक कला है।
अनुच्छेद लिखते समय सरल, स्पष्ट, रोचक तथा व्यवहारिक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
अनुच्छेद लिखने से पूर्व विषय की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
अभ्यास
फॉर्मेटिव अभ्यास
सोचिए और बताइए -
(क) 'जल-प्रदूषण' विषय पर अपने शब्दों में अनुच्छेद सुनाओ।
(ख) 'गुरु' विषय पर अपने शब्दों में अनुच्छेद सुनाओ।
समेटिव अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
(क) अनुच्छेद लेखन किसे कहते हैं?
(ख) अनुच्छेद लिखते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए? लिखो।
2. निम्नलिखित विषयों पर अनुच्छेद लिखिए -
- जीवन में ज्ञान का महत्व।
- महात्मा गांधी। (महात्मा गाँधी पर निबंध)
- बाल-दिवस।
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