2. वर्ण विचार : Phonology
किसी भी भाषा या बोली में वर्ण का होना जरूरी होता है आज इस पोस्ट में हिंदी वर्ण विचार के बारे में चर्चा करने वाले हैं। वर्ण किसी भी भाषा का अणु की तरह होता है जिससे मिलकर शब्द बनता फिर वाक्य बनते है। अगर सोचा जाये तो भाषा के विकास ने मनुष्य को सभ्य और विकसित बनाया है।
वर्ण विचार किसे कहते हैं
वर्ण विचार व्याकरण का मूल है इसमें वर्णों के उच्चारण, आकार और शब्द बनाने के नियमों का वर्णन हो। वर्ण जिसे अक्षर भी कहा जाता है। हिंदी में 52 वर्ण या अक्षर होते है। इन्ही वर्णो के मेल से शब्द का निर्माण होता है।
यहां पर वर्ण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है - वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है जिसके और टुकड़े नही किये जा सकते हैं।
मनुष्य तथा विभिन प्रकार के जीव जंतु अपने मुख से ध्वनियाँ निकालते है जो की एक प्रकार के सूचना का काम करते हैं। इन ध्वनियों को जिसका कोई अर्थ हो उसे भाषा कहते हैं। अब भाषा के बारे में मैंने पिछले पोस्ट में भी बताया था।
इसे भी पढ़ें : भाषा-बोली, लिपि और व्याकरण Language-Dialect, Script and Grammar
भाषा के अंतर्गत कुछ चिन्हों को लिखित रूप में चुना गया है, जिसे हम शब्द कहते है यहां पर जो शब्द हैं वो सभी वर्णों के मिलने से ही बनते हैं। इस प्रकार वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। जिसे और बांटा नहीं जा सकता अर्थात इसका संधि विच्छेद नहीं किया जा सकता है। इन उच्चारित ध्वनि संकेतों को ही जब लिपिबद्ध किया जाता है तो उसे हम वर्ण कहते हैं।
इस प्रकार से वर्णों के मिलने से ही शब्द का निर्माण होता है। इन वर्णों को हिंदी व्याकरण में एक जगह में एकत्र करके क्रम से रखा जाता है उसे वर्ण माला कहते हैं। आइये इसे विस्तार से जानते हैं।
इसे पढ़ें : शब्द-विचार: Morphology
वर्णमाला किसे कहते हैं
परिभाषा - किसी भाषा के वर्णों के व्यवस्थित और क्रमबध्द समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी में 11 स्वर और 33 व्यंजन होते है। इसके अलावा दो उच्छिप्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं। इन्हे और भंगो में बांटा गया है जो निम्न प्रकर से है।
- स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
- स्पर्श व्यंजन - क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म
- अन्तःस्थ व्यंजन - य र ल व
- उष्प व्यंजन - श ष स ह
- संयुक्त व्यंजन - क्ष त्र ज्ञ श्र
- अयोगवाह - अं अः
- अन्य - ड़ ढ़
वर्ण के कितने भेद हैं वर्ण के दो भेद होते है स्वर और व्यंजन।
स्वर किसे कहते हैं
स्वर ऐसे वर्ण होते हैं जिनका उच्चारण करते समय किसी भी प्रकार की रुकावट का अनुभव हमें नहीं होता है। जब स्वर वर्ण का उच्चारण किया जाता है तो वायु हमारे मुख से बिना किसी रुकावट सीधी बाहर निकलती है।
स्वर वर्ण अलग अलग भाषा में अलग अलग प्रकार के होता है जैसे की हम बात करे अंग्रेजी भाषा की तो यहां रोमन लिपि का प्रयोग किया जाता है और यहां पांच स्वर ही होते हैं लेकिन हिंदी में ऐसा नही होता है। हिंदी भाषा में कुल 11 स्वर वर्ण होते हैं। और इन्हें स्वर माला के नाम से भी जाना है।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
स्वर के कितने भेद होते हैं
स्वर के तीन भेद होते है। 1. हस्व स्वर 2. दीर्घ स्वर 3. प्लुत स्वर। जिसे निचे विस्तार से समझाया गया है।1. हस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है, उन्हें हस्व स्वर कहते हैं। मतलब जो फटैक से जल्दी मुँह से निकला है ज्यादा प्रेसर क्रिएट नही करना पड़ता ऐसे स्वर हस्व स्वर कहलाते हैं। हस्व स्वर चार प्रकार ही होती हैं हिंदी भाषा में आइये देखते है कौन कौन से हैं-
अ, इ, उ, ऋ। इन हस्व स्वरों को मूल स्वर भी कहा जाता है, क्योकि इनके मिले बिना कोई भी वर्ण अधूरा ही रहता है। अब देखते हैं दीर्घ स्वर के बारे में दीर्घ स्वर क्या है?
2. दीर्घ स्वर - जैसे की नाम से पता चल रहा है दीर्घ मतलब बड़ा या ज्यादा तो ये दीर्घ स्वर वर्ण ऐसे स्वर वर्ण होते हैं जिनको उच्चारण करने में हस्व स्वर से ज्यादा समय लगता है। कहने का मतलब है की ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में हस्व स्वर से दोगुना समय लगता उन्हें हम दीर्घ स्वर कहते हैं। हिंदी व्याकरण में दीर्घ स्वर की में दीर्घ स्वर की संख्या सात हैं जिनको हमने यहां पर बताया है वो कुछ इस प्रकार से हैं -
3. प्लुत स्वर - अब तक हमें जाना दीर्घ स्वर और हस्व स्वर के बारे में अब जानते हैं की प्लुत स्वर क्या हैं और किस प्रकार के होते हैं। प्लुत स्वर ऐसे स्वर होते हैं जो की सबसे ज्यादा समय लेते हैं मैंने ऊपर जो बताएं उन स्वरों से उच्चारण में। तो इस प्रकार इसकी परिभाषा हुई ऐसे स्वरों को प्लुत स्वर कहा जाता है जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी समय लगता है, उन्हें हम प्लुत स्वर कहते हैं। जैसे -
ओउम्। परन्तु हिंदी ग्रामर में इसका आजकल उपयोग कम हो गया है। अब लोग प्लुत स्वर का उपयोग ज्यादा नही करते हैं।
इसे पढ़ें : Class 8 hindi grammar solution : By Khilawan
स्वरों की मात्राएँ - स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित प्रकार की हैं-
स्वर | मात्रा चिन्ह | मात्रायुक्त रूप | स्वर | मात्रा चिन्ह | .मात्रा युक्त रूप |
अ | क्+अ - क | ए | े | क्+ए - के | |
आ | ा | क्+आ - का | ऐ | ै | क्+ऐ - कै |
इ | ि | क्+इ - कि | ओ | ो | क्+ओ - को |
ई | ी | क्+ई - की | औ | ौ | क्+औ - कौ |
उ | ु | क्+उ - कु | अं | ं | क्+अं - कं |
ऊ | ू | क्+ऊ - कू | अः | : | क्+अः - कः |
ऋ | ृ | क्+ऋ - कृ | ऑ | ॉ | क्+ऑ - कॉ |
अयोगवाह (अं)- यहां पर इसका संधि विच्छेद करते हैं देखते हैं क्या आता है अ+योग+वाह मतलब इसके आगे में स्वर जुड़ रहा है और यह तीन ध्वनियों के मिलने से बना है। इस प्रकार अयोगवाह ऐसे स्वर हैं जो की तीन ध्वनियों के मिलने से बनते हैं और जिनके आगे में स्वर वर्ण जुड़ते हैं और इस प्रकार यह न तो व्यंजन होता है और न ही स्वर होता है। इस कारण इसे अयोगवाह कहते हैं। ऊपर हमने देखा था अं और अः ये दोनों अयोगवाह के अंतर्गत आते हैं।
इसे पढ़ें : संधि : Joining
अनुस्वार (ं)- इसके नाम से स्पष्ट होता है अनु का अर्थ होता है पीछे या बाद में आने वाला। इस प्रकार के वर्ण के उच्चारण में वायु केवल नासिका अर्थात नाक से निकलती है इस कारण इसे अनुस्वार कहते हैं। जैसे- पंख, संदू आदि।
अनुनासिक (ँ) - अनु नासिक अर्थात नाक और मुख दोनों से वायु नकलती है इस प्रकार के वर्ण के या शब्द के उच्चारण में इन शब्दों या वर्णों को ही हम अनुनासिक कहते हैं। जैसे - साँतरा, आँख, आँचल आदि।
विसर्ग (:) - यह लगभग आधा ह् है जो की दो बिंदु (:) के रुप में किसी शब्द के बाद लगाए जाते हैं। विसर्ग का उच्चारण हल्के ह् के रूप में होता है। जैसे की इन शब्दों को देखें - सुखिनः, मनवः, अन्तः, अतः आदि
ध्यान दें - स्वरों की मात्राएँ शिरोरेखा अर्थात वो मात्राएँ जो की रेखा के ऊपर लगती हैं जैसे की ऐ की मात्रा ओ की मात्रा आदि। में चन्द्रबिन्दु वाला मात्रा यदि लगे तो उसे अनुस्वार (ं) जिसे अंक की मात्रा कहते हैं उसे ही लगाना चाहिए। जैसे उदाहरण तौर पर - चेंज, टेंशन, मेंसन, चोंगा, चिंता, अंक, अंग आदि।
अभी तक हमने जाना स्वर के बारे में अब चलिए जानते हैं व्यंजन के बारे में
व्यंजन - ये ऐसी ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण हम अपने मुख से अलग अलग प्रकार से अंगों के टकराने के बाद ही निकाल पाते हैं इस प्रकार के व्यंजन की संख्या हिंदी ग्रामर में व्यंजन 33 प्रकार के होते हैं। और इसमें यदि संयुक्त व्यंजन को जोड़ दिया जाए तो यह 39 प्रकार का होता है हिंदी ग्रामर में।
व्यंजन in hindi
आइये आते हैं अब व्यंजन के इस टॉपिक पर विस्तार से जानते हैं व्यंजन क्या है हिंदी व्याकरण में?
चवर्ग - च छ ज झ ञ टवर्ग - ट ठ ड ढ ण तवर्ग - त थ द ध न पवर्ग - प फ ब भ म अंतःस्थ - य र ल व् ऊष्म - श ष स ह संयुक्त - क्ष त्र ज्ञ श्र अन्य - ड़ ढ़ |
व्यंजन जो की स्वर वर्णों के मिलने से बनता है उसे मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है जो की इस प्रकार है
- स्पर्श व्यंजन
- अंतःस्थ व्यंजन
- ऊष्म व्यंजन
इन तीनों प्रकार के बारे में आइये विस्तार से जानते हैं किस प्रकार के यह व्यंजन होते हैं।
1. स्पर्श व्यंजन - स्पर्श व्यंजन जैसे की इसके नाम से पता चलता है ये ऐसे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण करते समय मुख के जिव्हा का स्पर्श अलग अलग भागों को होता है। इस कारण ऐसे वर्णों को हम स्पर्श व्यंजन कहते हैं। अभी हमने ऊपर जो कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग देखा वह सब " क " से लेकर " म " तक स्पर्श व्यंजन के अंतर्गत आते है।
2. अंतःस्थ व्यंजन - अंतः का अर्थ जैसे की मध्य में स्थित होता है उसी प्रकार जब हम किसी वर्ण का उच्चारण करते हैं तो जब हमारी जिव्हा हमारे मुख के मध्य में होता है और किसी भी स्थान को स्पर्श नहीं करता हैं। तो उसे अंतःस्थ व्यंजन कहते हैं। हिंदी व्याकरण में अंतःस्थ व्यंजन की संख्या चार प्रकार की होती हैं जो की इस प्रकार हैं - य र ल व्
3. ऊष्म व्यंजन - ऊष्म का अर्थ होता है गर्म इसमें हवा या वायु को मिला दे तो । इस प्रकार जो हिंदी में ऊष्म व्यंजन हैं वह उच्चारण के समय हमारे मुख से वायु रगड़ खाकर बाहर निकलती है, उन्हें उष्म व्यंजन कहते हैं। ये चार प्रकार हैं जैसे - श, ष, स, ह। जैसे की मैंने कहा इसका उच्चारण करते समय मुख में ऊष्म (गर्मी) उत्पन्न होती है तथा श्वास में तेजी आती है।
4. संयुक्त व्यंजन - दो अथवा दो से अधिक वर्णों के संयोग से बनने वाले व्यंजन को संयुक्त व्यंजन कहते हैं; जैसे- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
5. दवित्व व्यंजन - एक जैसे दो व्यंजनों का एक साथ आना दवित्व व्यंजन कहलाता है; जैसे - सज्जन, उद्देश्य, प्रसन्न, हिस्सा, गन्ना आदि।
व्यंजनों का वर्गीकरण
(1) उच्चारण स्थान के आधार पर - यह तो हम सभी जानते हैं की जब भी ध्वनी का उच्चारण हम करते हैं। तो हमारे ध्वनि उच्चारण के लिए जो सहायक अंग हैं जैसे की श्वास नली और जिव्हा उनके द्वारा निकले हवा और जिव्हा के तालु तथा गाल से टकराने के बाद ही ध्वनि हमारे मुख से बाहर निकलती है जिसे हम वर्ण कहते हैं। अब यहां हम पढ़ रहें उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों को तो हमारे ध्वनि उच्चारण मे सहायक अंग जैसे - कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ आदि हैं उनके आधार पर उच्चारण स्थान के आधार पर व्यिंजन के प्रकार को नौ प्रकारों में बांटा गया है। जो की इस प्रकार है -
क्रम. सं. | उच्चारण स्थान | वर्ण |
1. | कंठ्य - | कंठ से बोले जाने के कारण इन्हें कण्ठ्य वर्ण कहते हैं ; जैसे- क, ख, ग, घ, ङ। |
2. | तालव्य - | तालु से बोले जाने के कारण इन्हें तालव्य वर्ण कहते हैं; जैसे- च, छ, ज, झ, ञ। |
3. | मूर्धन्य - | मूर्धा से बोले जाने के कारण इन्हें मूर्धन्य वर्ण कहते हैं; जैसे- ट,ठ,ड,ढ,ण,ष। |
4. | दंत्य - | दाँतों से बोले जाने के कारण इन्हें दन्त्य वर्ण कहते हैं; जैसे- त, थ, द, ध, न। |
5. | ओष्ठ्य - | ओंठों से बोले जाने के कारण इन्हें ओष्ठ्य वर्ण कहते हैं; जैसे- प, फ, ब, भ, म। |
6. | नासिक्य - | जिसका उच्चारण मुख तथा नाक से किया जाता हो उन्हें नासिक्य वर्ण कहते हैं; जैसे- अं, ङं, ञ, ण, न, म। |
7. | कंठोष्ठय - | जिनका उच्चारण कंठ और होठों से होता है उन्हें कंठोष्ठय वर्ण कहते हैं; जैसे- ओ, औ। |
8. | कंठ-तालव्य - | जिनका उच्चारण कंठ तथा तालु से होता है, उन्हें कंठ-तालव्य वर्ण कहते हैं; जैसे - ए, ऐ। |
9. | दंतोष्ठ्य - | जिनका उच्चारण दाँत तथा ओंठों की सहायता से होता है, उन्हें दंतोष्ठ्य वर्ण कहते हैं; जैसे- व्। |
अभी तक हमने पढ़ा था व्यंजनों का वर्गीकरण उच्चारण स्थान के आधार पर अब हम इसका दुसरा वर्गीकरण पढ़ेंगे जो की श्वास के आधार पर है आइये पढ़ें।
(2.) श्वास (प्राण) के आधार पर- श्वास के आधार पर व्यंजनों को दो भागों में बाँटा गया है-
अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजनों की परिभाषा इस प्रकार है -
(क) अल्पप्राण - जिन व्यंजनों के उच्च्चारण में फेफड़ों से आने वाली वायु की मात्रा कम लगती है, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं, इसमें प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा व पाँचवाँ व्यंजन तथा ड़, य, र, ल, व आते हैं।
(ख) महाप्राण - जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से निकलने वाली श्वास वायु की मात्रा अधिक होती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं; जैसे- प्रत्येक वर्ग का दूसरा व चौथा व्यंजन तथा श, ष, स, ह आते हैं।
इस प्रकार हिंदी में श्वास अर्थात सांस के धीरे से निकलने और जोर से निकलने के आधार और व्यंजनों को अल्पप्राण और महाप्राण कहा गया है। श्वास भी प्राण का ही रूप है इस प्रकार इन व्यंजनो को फेफड़े से निकलने वायु से तुलना करके इन व्यंजनों का वर्गीकरण किया गया है।
(3) स्वरतंत्रियों के कम्पन के आधार पर - यहां इस प्रकार के व्यंजनों का वर्गीकरण स्वर तंत्र अर्थात हमारे स्वर जहां से निकलते हैं जिसे हम हिंदी में कंठ कहते हैं और अग्रेजी में Throat कहते हैं इसके अलावा और भी स्वर तंत्र हैं और यहां पर इन्हीं अंग के कम्पन करने के आधार पर व्यंजनों को दो भागों बाँटा गया है-
(क) अघोष - यह घोष अर्थात घोषणा जिसका अर्थ होता है सुचना, के आगे अ उपसर्ग लगने से बना शब्द है, जिसका संधि विच्छेद करने पर अघोष=अ+घोष होता है। इसका अर्थ यह हुआ ही जब हम इस अघोष वर्ग में आने वाले व्यंजनों का उच्चारण करते हैं तो किसी भी प्रकार का कम्पन हमारे स्वरतंत्रियों में नही होता है। जैसे की - क, ख, च, छ, ट आदि।
(ख) सघोष - यह बिलकुल अघोष व्यंजन के विपरीत है इस प्रकार के व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों अर्थात स्वर तंत्र में कम्पन होता है। जिसे हम सघोष व्यंजन कहते हैं। जैसे- ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड आदि।
वर्ण-विच्छेद
वर्णों को अलग-अलग करके लिखना वर्ण-विच्छेद कहलाता है। इससे शब्दों के सही उच्चारण करने में सुविधा होती है। वर्ण-विच्छेद से हम अक्षर की सीमा भी आसानी से समझ सकते हैं; जैसे-
मृगनयनी - म+ऋ+ग+अ+न+अ+य+अ+न+ईव्याकरण - व्+य+आ+क+अ+र+अ+ण+अ
दिल्ली - द+इ+ळ्+ळ्+ई
उज्ज्वल - उ+ज+ज+व्+अ+ल+अ
उच्चारण संबधी अशुद्धियाँ |
आ (ा) की मात्रा संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुध्द | शुद्ध | अशुद्ध | शुद्ध |
अलोचना | आलोचना | अहार | आहार |
अगामी | आगामी | सम्राज्य | साम्राज्य |
परिवाहिक | पारिवारिक | सप्ताहिक | साप्ताहिक |
ई (ी), इ (ि) की मात्रा संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध | शुद्ध | अशुद्ध | शुद्ध |
कालीदास | कालिदास | परिक्षा | परीक्षा |
उन्नती | उन्नति | बिमार | बीमार |
नदीयाँ | नदियाँ | महिना | महीना |
उ (ु), ऊ (ू) की मात्रा संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुध्द | शुध्द | अशुद्ध | शुध्द |
हिंदु | हिंदू | सुरज | सूरज |
साधू | साधु | वधु | वधू |
गुरू | गुरु | कुसूम | कुसुम |
'ए' 'ऐ' संबंधी अशुध्दियाँ-
'ऐ' के स्थान पर 'ए' का प्रयोग करना- 'ए' के स्थान पर 'ऐ' का प्रयोग करना-अशुद्ध | शुद्ध | अशुद्ध | शुद्ध |
एैनक | ऐनक | एक्य | ऐक्य |
फैंकना | फेंकना | देनिक | दैनिक |
भाषाऐं | भाषाएँ | एतिहासिक | ऐतिहासिक |
'न', 'ण' संबंधी अशुद्धियाँ-
'न' के स्थान पर 'ण' का प्रयोग करना- 'ण' के स्थान पर 'न' का प्रयोग करना-अशुद्ध | शुद्ध | अशुद्ध | शुध्द |
दाणी | दानी | आचरन | आचरण |
पाणी | पानी | प्रमान | प्रमाण |
सावण | सावन | किरन | किरण |
वचन संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध | शुद्ध | अशुध्द | शुद्ध |
रोटीयाँ | रोटियाँ | बहूएँ | बहुएँ |
नदीयाँ | नदियाँ | सखीयाँ | सखियाँ |
'छ', 'क्ष' संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुध्द | शुद्ध | अशुद्ध | शुद्ध |
छितिज | क्षितिज | छीर | क्षीर |
लछमन | लक्ष्मण | छत्रिय | क्षत्रिय |
रेफ (-र्र) की अशुद्धियाँ-
अशुध्द | शुध्द | अशुद्ध | शुद्ध |
मरयादा | मर्यादा | आर्शीवाद | आशीर्वाद |
धरम | धर्म | स्वरगीय | स्वर्गीय |
अरथ | अर्थ | कार्यकर्म | कार्यक्रम |
'श', 'ष' तथा 'स' संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध | शुद्ध | अशुद्ध | शुध्द |
कश्ट | कष्ट | हर्श | हर्ष |
निश्ठुर | निष्ठुर | सथान | स्थान |
निश्फल | निष्फल | निर्दोश | निर्दोष |
चंद्रबिंदु और अनुस्वार संबंधी अशुद्धियाँ-
अशुद्ध | शुद्ध | अशुद्ध | शुध्द |
मुंह | मुँह | आंख | आँख |
पांचवा | पाँचवाँ | बांसुरी | बाँसुरी |
चांद | चाँद | दांत | दाँत |
इस प्रकार वर्ण विचार (phonology) का टॉपिक पूरा हुआ आगे की जानकारी के लिए ब्लॉग को सब्स्क्राइब जरूर करें जब आप हमारे ब्लॉग को सब्स्क्राइब करेंगे तो आपके पास हमारे ब्लॉग के सभी अपडेट पहुचते रहेंगे।
<<Previous post : 1. भाषा-बोली, लिपि और व्याकरण (Language-Dialect, Script and Grammar)
Next post : 3. संधि (Joining)>>
अन्य महत्वपूर्ण टॉपिक जो की आपके लिए उपयोगी हैं -
1. भाषा-बोली, लिपि और व्याकरण Language-Dialect, Script and Grammar
रचनात्मक मूल्यांकन-1
10. लिंग : Gender
11. वचन : Number
12. कारक : Case
रचनात्मक मूल्यांकन-2
योगात्मक मूल्यांकन-1
15. क्रिया : Verb
16. काल : Tense
17. वाच्य : Voice
19. विराम-चिन्ह : Punctuation Marks
रचनात्मक मूल्यांकन-3
20. मुहावरे और लोकोक्तियाँ : Idioms and Proverbs
21. अनुच्छेद लेखन : Paragraph-Writing
22. पत्र-लेखन : Letter-Writing
23. निबंध-लेखन : Essay-Writing
24. अपठित गद्यांश : Unseen Passage
रचनात्मक मूल्यांकन-4
योगात्मक मूल्यांकन-2
Post a Comment