Bhramar Geet Saar Ki Vyakhya
भ्रमरगीत सार की व्याख्या
नीके रहियो जसुमति मैया।
आवैंगे दिन चारि पांच में हम हलधर दोउ भैया।।
जा दिन तें हम तुमतें बिछुरे काहु न कहयों 'कन्हैया'।
कबहुँ प्रात न कियो कलेवा, साँझ न पीन्ही धैया।।
बंसी बेनु संभारि राखियो और अबेर सबेरो।
मति लै जाय चुराय राधिका कछुक खिलौनों मेरो।
कहियो जाय नंदबाबा सों निष्ट बिठुर जिय कीन्हों।
सूर स्याम पहुँचाय मधुपुरी बहुरि सँदेस न लीन्हों।।10।।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारे एम. ए. हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम से लिया गया है इन पदों को सूरदास ने कहा है और उनके शिष्यों के द्वारा संकलित किया गया था। जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं।
प्रसंग - श्री कृष्ण उद्धव के ब्रज प्रस्थान के समय माता यशोदा के लिए संदेश कह रहें और नंद बाबा को निष्ठुर कह रहे हैं।
भ्रमरगीत सार की व्याख्या - श्री कृष्ण कहते हैं, हे उद्धव तुम माता यशोदा से कहना की वः भली भाँती रहें हँसी खुशी से रहे हमारे लिए चिंतीत या व्याकुल न हो हम दोनों भाई अर्थात मैं और बलराम चार पांच दिन में अर्थात शीघ्र ही वहां ब्रज में आकर सबसे मिलेंगे।
नंद बाबा से कहना की जिस दिन से हम उनसे विलग्न हुए हैं हमें प्यार से किसी ने कन्हैयाँ भी नही कहा और हमने वहाँ से आने के बाद न कभी प्रातः काल नास्ता किया है न ही छैया अर्थात गाय के थन से निकला हुआ ताजा ताजा दूध ही पीया है। हे उद्धव माता से यह भी कहना की वह बंशी आदि मेरे सभी खिलौने सम्हाल कर रखें ताकि राधिका मौक़ा पाकर उनके सारे खिलौने चुराकर न ले जाए।
हे उद्धव तुम हमारे नंद बाबा से कहना की उन्होंने तो हमारे ओर से अपना हृदय बिलकुल ही निष्ठुर और कठोर कर लिया है वह जब से हमें मथुरा छोड़कर गए हैं, न तो हमारी खोज खबर ली और न तो किसी के हाँथ से कोई संदेश ही भिजवाया है।
भ्रमरगीत सार की विशेषताएं -
- यह पद उस आक्षेप का खंडन करती है जिसमें कहा गया है की सूरदास के पद में सिर्फ गोपियों का विरह वर्णन है।
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