भ्रमर गीत सार : सूरदास पद क्रमांक 9 सप्रसंग व्याख्या - By Khilawan

Bhramar Geet Saar Ki Vyakhya

अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 08 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग questionfieldhindi.blogspot.com में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 09की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।

भ्रमरगीत सार की व्याख्या

पद क्रमांक 9 व्याख्या 
- सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल 

पथिक ! संदेसों कहियो जाय। 
आवैंगे हम दोनों भैया, मैया जनि अकुलाय।। 
याको बिलग बहुत हम मान्यो जो कहि पठयो धाय। 
कहँ लौं कीर्ति मानिए तुम्हारी बड़ो कियो पय प्याय।। 
कहियो जाय नंदबाबा सों, अरु गहि जकरयो पाय। 
दोऊ दुखी होन नहिं पावहि धूमरि धौरी गाय।। 
यद्धपि मथुरा बिभव बहुत है तुम बिनु कछु न सुहाय। 
सूरदास ब्रजवासी लोगनि भेंटत हृदय जुड़ाय।।9।।

शब्दार्थ : पथिक=यात्री। अकुलाय=व्याकुल। जनि=मत। बिलगु=बुरा। धाय=धाई या पालन पोषण करने वाली। पय=दूध। धूमरी=काली। धौरी=सफेद। विभव=एसो-आराम। सुहाय=अच्छा लगता। जुड़ाय=प्रसन्न होता है।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारे एम. ए. हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं।

प्रसंग - उद्धव ब्रज के लिये प्रस्थान करने वाले हैं। उसी समय श्री कृष्ण उद्धव से कह रहे हैं।
व्याख्या - श्री कृष्ण उध्दव से कहते हैं हे पथिक हे उद्धव तुम ब्रज जाकर कहना हम दोनों भाई ब्रज में सबसे मिलने शीघ्र ही आएंगे, उनसे कहना वो ज्यादा व्याकुल न हों।

उनको जाकर के कहना की उन्होंने जो माता देवकी को धाय कहके संदेस भेजा है उसका हमने बहुत बुरा माना है उनसे ये भी कहना हे माता तुम्हारी कीर्ती का कहाँ तक वर्णन करूँ वह तुम ही हो जिसने अपना दूध पिलाकर इतना बड़ा किया है।

हे उद्धव तुम नंद बाबा से उनके चरण पकड़कर कहना की वह गायों का ध्यान रखें। मेरी काली और सफेद गायें मेरे बिना दुःखी न होने पाएं। श्री कृष्ण के कहने का भाव यह है की नंद बाबा हमारे आदरणीय हैं। यध्द्यपि उनके चरण पकड़कर उन्हें यथोचित आदर देना संवाद देना अनिवार्य है। यद्धपि मथुरा नगरी में आपार गौरव और सुख प्राप्त है लेकिन आपके बिना हमें यहां कुछ भी नही सुहाता एक तरफ तो यह वैभव है और दूसरी तरफ आपका स्नेह। सूरदास जी कहते हैं की श्री कृष्ण के हृदय को तभी संतावना और संतोष प्राप्त होता है। जब वो ब्रजवासियों के मध्य में होते हैं। अर्थात श्री कृष्ण कहते हैं की हमें ब्रजवासियों से मिलकर ही वास्तविकता का या ज्ञान की अनुभूति होती है।

भ्रमरगीत सार की विशेषताएं -

  1. इस पद में अत्यंत धार्मीक संवेदना और मार्मिकता है। 
  2. गायों के प्रति सही कृष्ण का प्रेम ग्रामीण जीवन के प्रति श्री कृष्ण का प्रेम है। 
  3. पथिक शब्द भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह उद्धव के लिए प्रयुक्त हुआ है। 
  4. सातवीं पंक्ति में उत्तरालंकार है। 
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