अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 63 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 64 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।
भ्रमरगीत सार की व्याख्या
पद क्रमांक 64 व्याख्या
64. राग सारंग
निर्गुन कौन देस को बासी ?
मधुकर ! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति साँच, न हाँसी।।
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि , को दासी ?
कैसो बरन, भेस है कैसो केहि रस कै अभिलासी।।
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे ! कहैगो गाँसी।
सुनत मौन है रह्यो ठग्यो सो सूर सबै मति नासी।।
शब्दार्थ :
वासी=निवासी। मधुकर=भ्रमर। सौह दै=सौगंध देकर। बुझति=पूछती हैं। साँच=सत्य बात। हाँसी=हँसी नहीं कर रहीं। जनक=पिता। जननि=माता। नारि=पत्नी। दासी=सेविका। वरन=वर्ण, रंग। भेश=वेश-भूषा। गाँसी=कपट की बात। नासी=नष्ट हो गई। मति=बुद्धि, विवेक।
संदर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारे हिंदी साहित्य के भ्रमर गीत सार से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं।
प्रसंग :
गोपियाँ निर्गुण ब्रम्ह के विषय में अत्यंत मनोरंजक प्रश्न पूछकर उद्धव का हँसी उड़ा रहीं हैं।
व्याख्या :
सूरदास जी कहते हैं की गोपियाँ भ्रमर के माध्यम से पूछ रहीं हैं, हे उद्धव तुम्हारा ये निर्गुण किस देश में निवास करता है। कहाँ का रहने वाला है उसका पता ठिकाना क्या है, हे मधुकर हम कसम खाकर कहती हैं, कि हमें नहीं पता की वह कहाँ रहता हैं किस देश में निवास करता है और इसलिए हम तुमसे सच-सच पूछ रही हैं कोई हँसी मजाक नहीं कर रहीं हैं और और इसलिए हमें इस निर्गुण ब्रम्ह के निवास के बारे में ठीक ठीक बता दो तुम हमें बताओ की तुम्हारे इस निर्गुण ब्रम्ह का पिता कौन है? इसकी माता कौन है इसकी दासी कौंन हैं और ये जो तुम्हारा निर्गुण ब्रम्ह है। उसका रूप रंग उसकी वेश-भूषा किस प्रकार की है और उसकी रूचि किस प्रकार के रस में है। अर्थात उसकी रूचि किस प्रकार के कार्यों में है और आगे उद्धव को सावधान करते हुए गोपियाँ कहती हैं, की हे उद्धव सुन लेना की तुमने अपने निर्गुण ब्रम्ह के बारे में यदि कोई झूटी बात कही कोई कपट पूर्ण बात कहि तो फिर इस करनी का फल भी तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा। गोपियों के मुँह से इस प्रकार की बातों को सुनकर उद्धव थका सा रह गया मौन रह गया चुप रह गया।
गोपियों की इस प्रकार चतुराई पूर्ण बातों को सुनकर उद्धव जो है मौन खड़े रह गए उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला ऐसा प्रतीत हुआ मानो इनका समस्त ज्ञान और विवेक उनका साथ छोड़ गया हो प्रस्तुत पद व्यंग्य काव्य का सुंदर उदाहरण है सम्पूर्ण पद में गोपियो का उद्धव के प्रति व्यंग्य भाव प्रस्तुत हुआ है। अपने वाग वैदग्ध से उद्धव की हंसी उड़ाती हैं परन्तु साथ ही साथ उन्हें यह विश्वास भी दिलाती हैं की वे ब्रम्ह के विषय में जिज्ञासा रखती हैं।
विशेष :
- गोपियों द्वारा उद्धव की हंसी उड़ाई गई है।
- गोपियाँ उद्धव को नीचा दिखाने की कोशिस कर रही हैं।
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