Bhramar Geet Saar Ki Vyakhya
अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 23 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग questionfieldhindi.blogspot.com में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 24 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।
भ्रमरगीत सार की व्याख्या
पद क्रमांक 24 व्याख्या - सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल
पद क्रमांक 24
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहे।
यह व्योपार तिहारो ऊधो ! ऐसोई फिरि जैहै।।
जापै लै आए हौ मधुकर ताके उर न समैहै।
दाख छाँड़ि कै कटुक निम्बौरी को अपने मुख खैहै ?
मूरी के पातन के केना को मुक्ताहल दैहै।
सूरदास प्रभु गुनहि छाँड़ि कै को निर्गुन निबैहै।।24।।
शब्दार्थ : ठगौरी=जादू, ठगाई से भरा सौदा। फिरि जैहैं=लौटा दिया जाएगा। जापै=जिसके पास। कटुक=कड़वी। निवौरी=नीम का फल। खैहै=खाएगा। केना=सौदा, बदले में। मुक्ताहक=मोती। निखैहैं=निवाएगा, साधन करेगा।
संदर्भ : प्रस्तुत पद्यांश हमारे एम. ए. हिंदी साहित्य के पाठ्यपुस्तक के हिंदी साहित्य के द्वितीय सेमेस्टर के प्रश्न पत्र 6 के इकाई 1 सूरदास भ्रमरगीत सार से लिया गया है। जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं।
प्रसंग : गोपियाँ उद्धव के ज्ञान योग को निश्शार बताकर उन पर गंभीर व्यंग्य करती हैं और कह रही हैं।
व्याख्या : हे उद्धव तुम्हारा ये ज्ञान योग रूपी ठगी और धूर्तता का मार्ग है वह ब्रज में नहीं बिक पायेगा। यह सौदा यहां से इसी प्रकार लौटा दिया जाता है यहां इसे कोई नहीं खरीदेगा। हे मधुकर तुम यह समान जिसके लिए इतने दूर तक आये हो उसे यह पसंद नहीं आएगा। और उसके हृदय में नहीं समा पयेगा।
ऐसा कौन मुर्ख होगा जो अपने अंगूर के दानों को छोड़कर नीम के कड़वे फल को खायेगा। निबोरी को खयेगा और मूली के पत्तों के बदले में तुम्हें मोतियों के दाने कौन देगा।
गोपियाँ यह कहना चाहती हैं की तुम्हारा ये जो ब्रम्ह है वो निर्गुण ब्रम्ह है वह नीम के फल के समान कड़वा और मूली के पत्ते के समान फीका है। अर्थात तुच्छ है त्याज्य है और हमारे श्री कृष्ण जो हैं वो अंगूर के समान मधुर और मोतियों के समान बहुमूल्य हैं इसीलिए हम ऐसे मुर्ख नही हैं कृष्ण को छोड़कर के तुम्हारे निर्गुण ब्रम्ह की साधना करें।
अर्थात ऐसा कौन मुर्ख है जो सम्पूर्ण गुणों के भंडार सगुण रूपी कृष्ण को छोड़कर के तुम्हारे गुणहीन निर्गुण ब्रम्ह के साथ निर्वाह करे। या उसकी साधना करे।
विशेष :
- दाख छाँड़ि कै कटुक निम्बौरी में अन्योक्ति अलंकार है।
- जोग ठगौरी में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
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