भ्रमर-गीत-सार : सूरदास पद क्रमांक 55 की व्याख्या - By Khilawan

Bhramar Geet Saar Ki Vyakhya

अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 53 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग questionfieldhindi.blogspot.com में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 55 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।

भ्रमरगीत सार की व्याख्या

पद क्रमांक 55 की व्याख्या 
- सम्पादक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

55. राम केदारो 
जनि चालो, अलि, बात पराई। 
ना कोउ कहै सुनै या ब्रज में नइ कीरति सब जाति हिंराई।।
बूझैं समाचार मुख ऊधो कुल की सब आरति बिसराई। 
भले संग बसि भई भली मति, भले मेल पहिचान कराई।।
सुंदर कथा कटुक सी लागति उपजल उर उपदेश खराई। 
उलटी नाव सूर के प्रभु को बहे जात माँगत उतराई।।

शब्दार्थ :
जनि=मत, न। पराई=दूसरे की। हिराई=नष्ट की। आरती=दुःख, कष्ट, विपदा। बिसराई=भुला दी। कटुक=कड़वी। उर=हृदय। खराई=विरक्ति। उतराई=पारिश्रमिक। 

संदर्भ :

प्रस्तुत पद्यांश हिंदी साहित्य के भ्रमरगीत सार से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं। जिसे उन्होंने सूरसागर से सम्पादित किया है। 

प्रसंग :
यहां पर गोपियाँ जो हैं वह उध्दव को कृष्ण के आलावा और किसी के विषय में चर्चा करने से मना करे हैं। 

व्याख्या :
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव, हे अलि तुम यहॉँ कृष्ण के अतिरिक्त और किसी की बात न चलाओ क्योंकि यहाँ ब्रज में श्री कृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी की बात न तो कोई करता है और न सुनता है। 

तुम्हारे बार-बार इस प्रकार की बातें दोहराने से तुम्हारी वह समस्त कीर्ती नई-नई जो तम्हें प्राप्त हुई है वह सारी की सारी कीर्ति नष्ट होये जा रही है जो यहाँ तुमने कृष्ण के सखा के रूप में अर्जित की थी। 

कवि कहना चाहते हैं कि कृष्ण को त्याग निर्गुण ब्रह्म की साधना का उपदेश सुनकर सब लोग तुम्हारे विरुद्ध होते जा रहे  हैं। 

हे उद्धव हम तुमसे यह समाचार पूछती हैं कि क्या उन्होंने अपने कुल की विपदाओं कष्टों को विस्तृत कर दिया है भूल गए हैं। क्या उन्हें कुल की कोई चिंता नहीं है मथुरा जाने पर कृष्ण को बहुत अच्छे अच्छे लोगों का सतसंग प्राप्त हुआ है और जिसके कारण उनकी बुद्धी भी श्लिष्ट हो गई है और इस नई बुद्धी के कारण ही उन्होंने तुम जैसे भले लोगों को हमारे पास भेजकर हमें तूम्हारा परिचय प्राप्त करने का अवसर दिया है। 

गोपियाँ यहाँ पर व्यंग्य कर रहीं हैं की मथुरा में बुरे लोगों की संगति के कारण कृष्ण की मति ऐसी हो गई है उनकी बुद्धि ऐसी हो गई है कि उन्होंने उद्धव को यहाँ योग का संदेश देने के लिए भेजा है। 

हे उद्धव तुम्हारे विवेक के अनुसार तो तुम्हारी यह निर्गुण ब्रम्ह की चर्चा सुंदर है लेकिन हमें कड़वी लगती है हमें अरुचिकर लगती है और इससे हमें विरक्ति होती है हमें तुम्हारी निर्गुण ब्रम्ह संबंधी योग ज्ञान की बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती। और तुम्हारे सखा का अद्भुत न्याय हमें समझ में नही आ रहा नाव तो नदी के मध्य में उलट गई है। यात्री जल में बहता जा रहा है मल्लाह उन्हें डूबने से बचाने के बजाय उनसे उतराई का परिश्रमिक मांग रहा है। 

सुरदास जी कहना चाहते हैं की कृष्ण गोपियों से प्रेम की लव लगाकर उन्हें त्यागकर खुद मथुरा चले गए और अब गोपियाँ मझधार में हैं और कृष्ण उन्हें वियोग साधना के माध्यम से निर्गुण ब्रम्ह की आराधना करने का संदेश देकर और व्यतीत कर रहे हैं यह तो ठीक वैसा ही है जैसे बहते हुए जा रहे यात्रियों से नाव का किराया माँगना। 

विशेष :

  1. कृष्ण के प्रति गोपियों का अनूठा प्रेम भाव उमड़ा है।
  2. गोपियों की वागपटुता का चित्रण हुआ है। 
  3. और सम्पूर्ण पद में सरल शब्दों का अनुपम प्रयोग है। 
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