अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 66 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 67 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।
भ्रमरगीत सार की व्याख्या
67. राग धनाश्री
कहति कहा ऊधो सों बौरी।
जाको सुनत रहे हरि के ढिग स्यामसखा यह सो री !
हमको जोग सिखावन आयो, यह तेरे मन आवत ?
कहा कहत री ! मैं पत्यात री नहीं सुनी कहनावत ?
करनी भली भलेई जानै, कपट कुटिल की खानि।
हरि को सखा नहीं री माई ! यह मन निसचय जानि।।
कहाँ रास-रस कहाँ जोग-जप ? इतना अंतर भाखत।
सूर सबै तुम कत भईं बौरी याकी पति जो राखत।।
शब्दार्थ :
बौरी=बावली, पगली। ढिंग=पास, समीप। सखा=मित्र। पत्यात=विशवास करती हूँ। कपट=छल। खानि=खजाना। निसचय=निश्चय। भाखत=कहते हैं। कत=क्यों। याकी=इसकी। पति=विश्वास। राखत=करती हो।
संदर्भ :
प्रस्तुत पद्यांश हमारे हिंदी साहित्य के भ्रमर गीत सार से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं।
प्रसंग :
गोपियों का मानना है कि योग का संदेश लाने वाला कृष्ण का सखा कभी नहीं हो सकता यह तो कोई धूर्त या कपटी है व्यंग्य कटु सुनाते हुए कहती हैं।
व्याख्या :
एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है की हे पगली तू उद्धव से क्या बात कर रही है। अरी पगली यह श्याम का सखा है यह कृष्ण का साथी है मित्र है जो सदा उनके पास निवास करता है।
और जिसके विषय में हम कब से सुनते आ रही हैं क्या यह समझ रही है की योग की शिक्षा देने आया है।
अरे तू क्या कह रही है मुझे तो इस बात का वीश्वास ही नही हो रहा की यहां हमें योग का संदेश देने के लिए आया है योग का संदेश देने के लिए उपदेश देने के लिए आया है तुम्ही बताओ प्रसन्न होगी कौन सी कहावत की सज्जन और भले लोग जो होते हैं अपनी प्रकृति के अनुसार दूसरों की भलाई में लगे होते हैं या रहते हैं और नीच मनुष्य अत्यंत कपटी होते हैं। और दूसरों का कार्य बिगाड़ने में खुशी अनुभव करते हैं और इसलिए हे सखि ये अपने मन में तूं निश्चय जान ले। यह कृष्ण का सखा नहीं है यह बात तूँ अपने मन में जान ले निश्चय जान ले।
हे सखी थोड़ा इस बात पर विचार करो की कहाँ तो श्री कृष्ण के साथ प्रेम विहार क्रीड़ाओं का आनंद और कहाँ योगसाधना का तपस्या का कठिन कार्य वो कैसी परस्पर विरोधी बातें कर रहा है यदि यह कृष्ण का सखा होता तो हमें उनके प्रेम से विमुख होकर योग की तपस्या का उपदेश नहीं देता। अरे तुम सब क्या पागल हो गई हो जो इसकी बातों को विशवास करके इसे कृष्ण के सखा के समान आदर दे रही हो यह तो कोई छलिया है कोई बहरूपिया है जिसे यहां से अपमानित करके भगा देना ही उचित है।
विशेष :
- प्रस्तुत पद में अत्यंत मार्मीक एवं चुभने वाला व्यंग्य किया गया है।
- कपट कुटिल की खानी में वृत्यानुप्रास अलंकार है।
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