भ्रमर-गीत-सार : सूरदास पद क्रमांक 69 की व्याख्या - By Khilawan

अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 68 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग questionfieldhindi.blogspot.com में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 69 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।

भ्रमरगीत सार की व्याख्या

  पद क्रमांक 69 व्याख्या 

- सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल

69. राग धनाश्री

प्रकृति जोई जाके अंग परी।
स्थान-पूँछ कोटिक जा लागै सूधि न काहु करी।।
जैसे काग भच्छ नहिं छाड़ै जनमत जौन धरी।
धोये रंग जात कहु कैसे ज्यों कारी कमरी ?
ज्यों अहि डसत उदर नहिं तैसे हैं एउ री।

शब्दार्थ : प्रकृति=स्वभाव, आदत। स्वान=कुत्ता। कोटिक=करोड़ो। सूधी=सीधी। न काहूकरी=कोई नहीं कर सका। काग=कौआ। भच्छ=खाने न खाने योग्य। कारी कमरी=काला कंबल। अहीर=सर्प। जनमत=जन्म लेते ही। जौन धरी=जिस समय। धरनी धरि=जिस समय। धरनी धरि=टेक पकड़ रखी है, स्वभाव बन गया है। एउ=यह भी। 

संदर्भ :

प्रस्तुत पद्यांश हमारे हिंदी साहित्य के  भ्रमर गीत सार से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं। 

प्रसंग :

गोपियों के द्वारा उध्दव की तुलना श्वान अर्थात कुत्ते से की जा रही है। 

व्याख्या :

एक गोपी दूसरी गोपी कहती है की आज तक करोड़ो प्रयत्न क्ररके भी कोई कुत्ते के पूँछ को सीधा नही कर पाया और इसका कारण क्या बताया? इसका कारण यह है की पूँछ का स्भाव सदा टेढ़ा है और स्वभाव को बदला नहीं जा सकता। और इसलिए अब से सीधा नहीं किया जा सकता। एक और उदाहरण देते हुए कहती हैं की कौआ जन्म से ही न खाने योग्य पदार्थ को खाना प्रारम्भ कर देता है कौआ अभक्षी को भी अर्थात खाने व न खाने योग्य पदार्थ को भी खाना प्रारम्भ कर देता है और पुरे जीवन इस स्वभाव को नहीं छोड़ता तुम्ही बताओ की धोने से काले कंबल का रंग उतर सकता है। क्या? जैसे सांप है वह दूसरों को डसने का काम करता है लेकिन दूसरों को डसने से उसका पेट नही भरता क्योकि उसके पेट में तो कुछ जाता ही नहीं फिर भी उसका स्वभाव पड़ गया है डसना और इसलिए मैं इसे छोड़ता नही और ऐसे ही यह उद्धव हैं दूसरों को दुखी करना इनका स्वभाव बन गया है। 

इन्हें इस बात की कोई चिंता नही है कि इनके व्यवहार का क्या परिणाम होगा? बस ये तो ऐसे ही हैं अर्थात दुसरों को दुखी करना इनका स्वभाव बन गया है इन्हें इसी बात में आनंद मिलता है। 

विशेष :

  1. गोपियों ने मानव स्वभाव का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। 
  2. दूसरे पंक्ति से चौथे पंक्ति तक स्वभावोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है। 
  3. स्वान-पूँछ कोटिक जो लागै सुधि न काहूकरी में अर्थांतर उपन्यास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

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