भ्रमरगीत सार : सूरदास पद क्रमांक 89 सप्रसंग व्याख्या By Khilawan

  भ्रमरगीत सार आचार्य रामचंद्र शुक्ल 

अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 88 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग questionfieldhindi.blogspot.com में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 89 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।

भ्रमर गीत सार व्याख्या 

  पद क्रमांक 89 व्याख्या 

सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल

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89. राग मलार

सँदेसनि मधुबन-कूप भरे।
जो कोउ पथिक गए हैं ह्याँ तें फिरि नहिं अवन करे।।
कै वै स्याम सिखाय समोधे कै वै बीच मरे ?
अपने नहिं पठवत नंदनंदन हमरेउ फेरि धरे।।
मसि खूँटी कागद जल भींजे, सर दव लागि जरे।
पाती लिखैं कहो क्यों करि जो पलक-कपाट अरे ?

शब्दार्थ - संदेसनि = सदेशों से। मधुवन = मथुरा। ह्यां ते  = यहाँ से। अवन करे = आने की नही सोची है। समोधे = समाधान। हमरेउ = हमारे भी। फेरि धरे = लौटाए नहीं। मसि = स्याही। खूँटी = समाप्त हो गई। दव = दावाग्नि। कपाट = किवाड़। 

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारे हिंदी साहित्य के भ्रमर गीत सार से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं। 

प्रसंग - यहाँ इस पद्यांश में एक गोपी श्री कृष्ण की निष्ठुरता के संदर्भ में जो कह रही है उसका वर्णन किया गया है। 

व्याख्या - गोपियाँ कृष्ण के वियोग में पूर्णतः दुखी जीवन बिता रही थीं। उन्होंने एक बार नही बल्कि कई बार श्री कृष्ण को संदेश भेजा की कृष्ण हमेशा के लिए न सहीं कम से कम एक बार तो आ जाएं पर कृष्ण ने तो पूरी निष्ठुरता धारण कर लिया है। वे आये ही नहीं। इस संदर्भ में एक गोपी कह रही है -

संदेशों से मथुरा का सारा कुआं भर गया है। भाव है हमने अनेक संदेश भेजे हैं किन्तु एक का भी कोई उत्तर नहीं आया है। हमने जिन पथिकों के माध्यम से कृष्ण के पास संदेश भेजा है वे भी दुबारा लौटकर नहीं हैं। न मालुम क्या कारण है जिससे वे आये ही नहीं हैं। 

हमें तो ऐसा प्रतीत होता है की या तो उन्हें कृष्ण ने समझा बुझा दिया है जिससे वे दुबारा लौटकर नहीं आये हैं या फिर कहीं रास्ते में ही उनके प्राण निकल गए हैं। 

गोपियाँ कहती हैं की आश्चर्य की बात यह है की वे अपने संदेश वाहकों को तो भेजते ही नहीं हैं हमारे भी अपने पास रख लिए हैं। भाव यह है की समझा बुझाकर उन्हें भी जैसे-तैसे कर समझा दिया है। परिणामतः वे आये ही नहीं हैं। 

उस कृष्ण को पत्र लिखते लिखते भी हम परेशान हो गई हैं। सभी स्याही समाप्त हो गयी है और कागज भी अश्रु जल से भीग गया है। इतना ही नही बल्कि सरकंडे जिनसे कलम बनती थी वे भी समाप्त हो गई हैं। 

अतः अब तो स्थिति बहुत ही विचित्र हो गई है। अब चिट्ठी कैसे लिखी जा सकती है क्योकि हमारे नेत्रों के पलक रूपी किवाड़ बंद हो गए हैं। भाव है की साधनों का अभाव पत्र लिखने और अधिक संदेश भेजने में व्याघात पहुंच रहा है। 

विशेष - बड़ी मार्मिक व्यंजना हुई है। पाठक को प्रभावित करने में पूरी तरह समर्थ यह पद गोपियों की वक्रता का पूरा निदर्शन करने में समर्थ है। 

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