भ्रमर-गीत-सार : सूरदास पद क्रमांक 63 की व्याख्या - By Khilawan

भ्रमर गीत के पद क्रमांक 63 की सप्रसंग व्याख्या 

अगर आप हमारे ब्लॉग को पहली बार विजिट कर रहे हैं तो आपको बता दूँ की इससे पहले हमने भ्रमर गीत के पद क्रमांक 62 की व्याख्या को अपने इस ब्लॉग questionfieldhindi.blogspot.com में पब्लिस किया था। आज हम भ्रमर गीत पद क्रमांक 63 की सप्रसंग व्याख्या के बारे में जानेंगे तो चलीये शुरू करते हैं।

भ्रमरगीत सार की व्याख्या

 पद क्रमांक 63 व्याख्या 

- सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल

63. राग मलार 

बातन सब कोऊ समुझावै। 
जेद्वि बिधि मिलन मिलैं वै माधव सो बिधि कोउ न बतावै।।
जधदपि जतन अनेक रचीं पचि और अनत बिरमावै। 
तद्धपि हठी हमारे नयना और न देखे भावै।।
बासर-निसा प्रानबल्ल्भ तजि रसना और न देखे भावै।।
सूरदास प्रभू प्रेमहिं, लगि करि कहिए जो कहि आबै।।

 शब्दार्थ :

बातन=बातों के द्वारा। पचि=थक गई। अनत=अन्यत्र। बिरमावै=विश्राम करते हैं। भावे=अच्छा लगता है। बासर-निशा=रात-दिन। तजि=त्याग, छोड़कर। रसना=जिहवा। लगि=नाते से। 

संदर्भ :

प्रस्तुत पद्यांश हिंदी साहित्य के भ्रमर गीत सार से लिया गया है जिसके सम्पादक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हैं। 

प्रसंग :

गोपियाँ उद्धव के उपदेश पर किस प्रकार खिझ उठी हैं, उसका वर्णन किया गया है। 

व्याख्या :

गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि सब लोग हमको बातों से ही समझाने का प्रयास कर रहें हैं बातों-बातों में ही रिझाना जानते हैं किन्तु कोई भी ऐसा उपाय नहीं बताता जिससे श्री कृष्ण से हमारा मिलन सम्भव हो जाय। 

हम तो कृष्ण के दर्शन की प्यासी हैं किन्तु लोग हमें कृष्ण के दर्शन के उपाय न बताकर केवल बातों से ही हमारा परितोष करना चाहते हैं। 

हमने कृष्ण से मिलने के अनेक प्रयत्न किये किन्तु वह कहि अन्यत्र अर्थात कुब्जा के पास मथुरा में आनंद के साथ आनंद विहार करते रहे और उन्होंने हमारी को खोज खबर नहीं ली। 

और इतना होने पर भी हमारे नयना, हमारे हटिले जो नेत्र हैं वो कृष्ण के दर्शनों के प्यासे हैं उन्हें कुछ और देखना अच्छा नहीं लगता। 

और हमारी ये जो जीभ है वह रात दिन श्री कृष्ण के गुणों का गान करती रहती है और उनको छोड़कर किसी और के गुणों को गान करती रहती है और उनको छोड़कर किसी और के गुणों को गाने में इसका मन नहीं लगता। 

सूरदास जी कहते है की गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं की हे उद्धव तुम तुम्हारे इस कृष्ण प्रेम को चाहे जो समझो और चाहे जो कहो इससे हमारे लिए कोई अंतर नही पड़ने वाला हम तो मन वचन और कर्म से उस कृष्ण की ही अनुरागिनीं हैं। 

अब से तुम्हारी इन बातों का तुम्हारी इस उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। 

विशेष :

  1. सम्पूर्ण पद में अमर्ष संचारी भाव है। 
  2. गोपियाँ की एकांक प्रेम निष्ठा और कृष्ण के प्रति एकांत समर्पण का भाव दर्शनीय हैं चाहे कोई कुछ भी कहे वे कृष्ण की अनुरागिनीं रहेंगी। 
  3. ऐसा प्रस्तुत पद ये सूरदास जी ने वर्णन किया है। 

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